Govardhan puja : गोवर्धन पूजा — कथा और छप्पन भोग का महत्व

Govardhan puja : गोवर्धन पूजा — कथा और छप्पन भोग का महत्व

 

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नमस्कार दोस्तों, हमारे ब्लॉग पोस्ट govardhan puja में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, प्राचीन काल से ही भारत देश में प्रकृति की पूजा का विधान रहा है। हमारी संस्कृति विश्व की एकमात्र ऐसी संस्कृति है जहां पशु-पक्षियों तथा अन्य जीवों से लेकर पेड़-पौधों की भी उपासना की जाती है। चाहे वह गौमाता की पूजा करना हो या फिर वृक्षों में पीपल तथा बरगद की।

सनातन संस्कृति सभी को समान भाव से देखती है तथा इसी कारण हम “ वसुधैव कुटुंबकम ” तथा “सर्वे भवन्तु सुखिनः” मंत्र द्वारा समस्त संसार के हित की कामना करते हैं जो कि विश्व में हमारी उदारता का परिचायक है। दोस्तों, आज की पोस्ट में हम एक ऐसे पर्वत की बात करेंगे जिसकी पूजा विश्वभर में प्रसिद्ध है इस पर्वत का नाम है गोवर्धन पर्वत। जिसकी पूजा गोवर्धन पूजा govardhan puja तथा अन्नकूट पूजा के नाम से प्रसिद्ध है।

दीपावली के अगले दिन यह त्योहार मानाया जाता है जिसमें पर्वत और भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है। यह पर्वत मथुरा वृंदावन मार्ग पर स्थित है जिसकी परिक्रमा के लिए देश-दुनिया से श्रद्धालु आते हैं। और जानकारियां पाने के लिये आईये, पोस्ट शुरू करते हैं।

गोवर्धन पूजा की कथा

 

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एक समय की बात है श्रीकृष्ण अपने मित्र ग्वालों के साथ पशु चराते हुए गोवर्धन पर्वत जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि माता यशोदा तथा अन्य ब्रजवासी किसी उत्सव की तैयारी मे लगे हुए हैं। श्रीकृष्ण ने माता यशोदा से इसका कारण जानना चाहा तो वे बोलीं कि लाला,  आज यहाँ मेघ व देवताओं के राजा इंद्रदेव की पूजा होगी जिससे वह प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे। इसके फलस्वरूप खेतों में अन्न उत्पन्न होगा और ब्रजवासियों का भरण-पोषण होगा।

यह सुनकर विष्णु जी के अवतार श्रीकृष्ण बोले कि वर्षा तो गोवर्धन पर्वत के कारण होती है और हमारी गाय भी यहीं पर चरती हैं इसलिये अधिक शक्तिशाली तो  गोवर्धन पर्वत है और इसलिए हम सभी को गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। श्रीकृष्ण की बात से सहमत होकर सभी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। जब यह बात इंद्रदेव को पता चली तो अहंकारवश उन्होंने क्रोधित होकर मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर मूसलाधार बारिश करें।

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बारिश से भयभीत होकर सभी गोपियां—ग्वाले श्रीकृष्ण के पास गए और उन्हें इस बारे में जानकारी दी। यह जानकर श्रीकृष्ण ने सबको गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलने के लिए कहा। सभी गोपियां-ग्वाले अपने पशुओं समेत गोवर्धन पर्वत की शरण में आ गए। तत्पश्चात श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुलि पर उठाकर छाते की तरह तान दिया।

बादल पूरे सात दिन तक लगातार बरसते रहें किन्तु ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी। यह अद्भुत चमत्कार देखकर इन्द्रदेव असमंजस में पड़ गए। तब ब्रह्मा जी ने उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार है।  श्रीकृष्ण ने इन्द्रदेव के अहंकार को चूर-चूर कर दिया था। इंद्रदेव श्रीकृष्ण से क्षमायाचना करने लगे अतः उन्होंने इन्द्रदेव को क्षमा किया और सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को भूमि तल पर रखा तथा ब्रजवासियों से कहा कि अबसे वे प्रत्येक वर्ष गोवर्धन पूजा कर govardhan puja अन्नकूट का पर्व मनाए। तभी से यह पर्व प्रचलित है और आज भी पूर्ण श्रद्धा भक्ति से मनाया जाता है |

गोवर्धन पूजा कब है

 

 वर्ष 2023 में यह पूजा 13 नवंबर, सोमवार को है।

गोवर्धन व्रत की पूजा विधि

 

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इस दिन प्रात: काल शरीर पर तेल मलकर स्नान करने का प्राचीन परम्परा है। इस दिन अपने कुल देव/ देवी का ध्यान करके पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत  बनाया जाता है। इसे लेटे हुये पुरुष की आकृति में बनाया जाता है फूल, पत्ती, टहनीयों तथा गाय की आकृति से सजाया जाता है।

गोवर्धन की आकृति बनाकर उनके मध्य में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है नाभि के स्थान पर एक गड्ढा बना लिया जाता है और वहां एक कटोरी व मिट्टी का दीपक रखा जाता है फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, मधु और बतासे इत्यादि डालकर पूजा की जाती है। गोवर्धन के गीत गाते हुए गोवर्धन की सात बार परिक्रमा की जाती है परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा लेकर जल की धारा को धरती पर गिराते हुआ चलता है दूसरा व्यक्ति जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करता है इस प्रकार परिवार के सदस्य परिक्रमा पूरी करते हैं। और फिर इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

गोवर्धन पूजा मंत्र

 

पूजा मे इस मंत्र का जाप विशेष फलदायी माना गया है —

 ऊँ वासुदेवाय हरये परमात्मने ।। प्रणत : क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:।। 

गोवर्धन पूजा में गौ पूजा का भी है विधान

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कुछ स्थानों पर गोवर्धन पूजा के साथ ही गायों को स्नान कराकर उन्हें सिंदूर तथा पुष्प मालाओं से सजाए जाने की परम्परा भी है इस दिन गाय का पूजन भी किया जाता है। गौमाता को स्नान कराकर गुड या कोई अन्य मिठाई खिलाई जाती है। ऐसी मान्यता है की ऐसा करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और घर धन—धान्य से परिपूर्ण रहता है।

गोवर्धन पूजा में प्रयोग की जाने वाली सामग्री

 

1- गाय का गोबर,

2- रोली व कलावा, भगवान कृष्ण की फोटो

3- चावल, कच्चा दूध,

4- फूलों की माला,

5- गन्ने बताशे, ,  दीपक, नैवेद्य,

6- फल, मिठाई, दूध‌-‌‌‌दही, शहद, घी तथा शक्कर,

7- मिट्टी का दिया, धूप।

कैसे हुई छप्पन भोग की शुरुआत ?

 

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दोस्तों, हम सभी जानते हैं कि भगवान को प्रसाद के रूप में छप्पन भोग लगाया जाता है। इसके पीछे कारण यह है कि ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण दिन में आठ बार भोजन करते थे। भगवान ने गोवर्धन पर्वत को पूरे 7 दिन तक धारण किया था जिस अवधि में वे निराहार अर्थात भूखे रहे थे। उन 7 दिन तथा दिन में 8 बार भोजन करने के आधार पर उन्हें 56 भोग चढ़ाने की परंपरा की शुरूआत हुई। 

॥इति॥

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