Lohri : जानें कब है लोहड़ी, मकर संक्रांति|
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लाग पोस्ट Lohri में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, भारत विविध संस्कृतियों तथा मान्यताओं वाला देश है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जहां कुछ ही किलोमीटर चलने के बाद भाषा तथा संस्कृति बदल जाती है कहा भी गया है कि कोस-कोस पर भाषा बदले कोस-कोस पर पानी। यही कारण है कि हमारा देश पूरे विश्व को अपनी ओर आकर्षित करता है तथा विश्व पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ता है।
हमारे यहां वर्ष के प्रथम महीने से ही त्योहारों का आगमन प्रारंभ हो जाता है जो कि वर्ष पर्यन्त तक अर्थात वर्ष के अंतिम महीने दिसंबर तक चलता है। इसी क्रम में इस वर्ष के जनवरी माह में लोहड़ी के उत्सव की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं उसके ठीक एक दिन बार मकर संक्राति का पर्व भी मनाया जायेगा।
दक्षिण भारत में पोंगल का त्योहार भी इसी क्रम में मनाया जाता है ये सभी उत्सव हमारे देश के विभिन्न प्रान्तों की संस्कृतियों को दर्शाते हैं। यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि ये सभी त्योहार मुख्यतः कृषि पर आधारित हैं। तो आइये जानते हैं इन उत्सवों के बारे में –
Lohri : 2024 में जानें क्या है डेट
वर्ष 2024 में यह उत्सव 13 जनवरी दिन शनिवार को मनाया जायेगा।
यों मनाते हैं उत्सव
लोहड़ी का त्योहार पंजाबी समाज का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो कि उत्तरी भारत में व्यापक रूप से बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन हमारे पंजाबी भाई-बहन अपने सभी रिश्तेदारों के साथ घर पर इकटठा होकर एक गोल घेरे के अंदर लकडियों तथा गोबर के कंडों को इकट्ठा कर उसमें अग्नि को प्रज्ज्वलित करते हैं तथा इस अग्नि के अंदर अपने खेत की फसल के कुछ दानों के साथ-साथ मक्का के दाने, मूंगफली तथा रेवड़ी आदि की भेंट चढ़ाते हैं।
परिवार की महिला सदस्य गीत गाती हैं। नवविवाहित दम्पत्ति या जिनके यहां संतान का जन्म होता है उनसे पैसे लेकर मुहल्ले या गांव भर में बच्चे ही बराबर-बराबर बांटते हैं। एक प्राचीन परम्परा के अनुसार सिख समाज द्वारा मन्नत पूरी होने पर गोबर के उपलों की माला बनाकर अग्नि में भेंट की जाती है जिसे ‘‘चरखा चढ़ाना‘‘ कहा जाता है। साथ ही साथ ढोल-नगाड़ों की थाप पर पारंपरिक नृत्य किया जाता है।
Why Lohri is Celebrated : उत्सव की मान्यता
यह त्योहार पंजाबी तथा हरयानी लोगों का एक प्रमुख त्योहार है। यह पंजाब में तो मुख्य रूप से मनाया ही जाता है साथ ही दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, और हिमाचल प्रदेश में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार मकर संक्रांति से एक दिन पहले अर्थात 13 जनवरी को प्रतिवर्ष मनाया जाता है। पूजा के बाद परिवार के सभी सदस्य भंगड़ा, गिद्धा जो कि पंजाब का प्रसिद्ध नृत्य है का आयोजन करते हैं तथा उत्सव मनाते हैं।
Dulla Bhatti Story in Hindi : दुल्ला भट्टी की कहानी
अकसर आपने लोहड़ी के दिन गाये जाने वाले गीतों में दुल्ला भट्टी का नाम जरूर सुना होगा। कहा जाता है कि इनके नाम के बिना लोहड़ी का त्योहार लगभग अधूरा-सा है इनका नाम लगभग सभी गानों में जोड़ा जाता है। दुल्ला भट्टी मुगल शासक अकबर के समय पंजाब में रहा करते थे।
इन्हें रॉबिन हुड की संज्ञा दी जाती है। ये मुगल शासन काल में मुगलों के अधिकारियों आदि से धन-सम्पत्ति जीतकर गरीबों में बांट दिया करते थे जिस कारण इन्हें पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था। इतिहास के जानकार बताते हैं कि उस समय संदल बार के जगह पर लड़कियों को गुलामी हेतु बलपूर्वक बेचा जाता था।
इन्होंने एक योजना के तहत इन सभी लड़कियों को मुक्त कराया तथा उनका विवाह हिन्दू लड़कों से कराया। कहा जाता है कि इन्होंने अकबर को अपनी राजधानी आगरा से लाहौर स्थानान्तरित करने को विवश कर दिया था।
Makar Sankranti 2024 : मकर संक्राति
मकर संक्रांति का त्योहार विश्व भर में रहने वाले हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है जिसे उत्तर भारत में खिचड़ी भी कहतें है। तमिलनाडु में इसे ‘‘पोंगल‘‘ तो गुजरात में इसे ‘‘उत्तरायण‘‘ के नाम से जाना जाता है। यह उत्सव उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बिहार तथा झारखंड में भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
इस दिन सूर्य देव के मकर राशि में गोचर करने से खरमास समाप्त हो जाता है तथा सभी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुण्डन आदि संस्कारों की शुरुआत हो जाती है।
Meaning of Makar Sankranti : पौराणिक कथाओं में मकर संक्रांति
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पृथ्वी पर जब असुरों का अत्याचार अत्यधिक बढ़ चुका था तब इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु जी ने पृथ्वी लोक से असुरों का संहार किया था। कहते हैं कि यह पर्व महाभारत के काल से मनाया जा रहा है महाभारत के समय जब भीष्म बाणों की शय्या पर पड़े थे तब उन्होंने भी सूर्य के उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करने के बाद ही प्राण त्यागे थे।
पर्व का वैज्ञानिक दृष्टिकोण: Scientific Reason of Makar Sankranti
प्राचीन परंपराओं के साथ ही साथ इस पर्व का वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। इस दिन मौसम में परिवर्तन होना प्रारम्भ हो जाता है तथा सूर्य के प्रकाश में गर्मी के साथ-साथ तपन में भी वृद्धि होने लगती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ हो जाता है।
स्नान-दान की परंपरा तथा महत्व
मकर संक्रांति के दिन स्नान तथा दान का अत्यधिक महत्व है। इस दिन श्रद्धालु पवित्र नदियों में अपने परिवार तथा सगे-सम्बन्धियों के साथ जाकर स्नान करते हैं। हरिद्वार, प्रयागराज, गढ़मुक्तेश्वर तथा बनारस आदि नदियों के किनारे बसे शहरों में इस दिन विशेष मेलों का आयोजन रहता है जिसमें भारी संख्या में लोग देश ही नहीं अपितु विदेश से भी आकर इन मेलों में सहभागी बनते हैं Lohri, Makar Sankranti, Pongal।
इस दिन तिल का दान तथा सूर्य भगवान को अर्घ्य देना भी विशेष फलदायी माना जाता है तिल का दान करने से जहां शनि से सम्बन्धित दोषों का शमन होता है वहीं तांबे से सूर्य को अर्घ्य देने से पितृं को शान्ति मिलती है तथा उनका आशीर्वाद हमें प्राप्त होता है।
खिचड़ी का प्रसाद: Khichdi Makar Sankranti
मकर संक्रांति के दिन मुख्यतः खिचड़ी तैयार की जाती है। इसे चावल तथा काली दाल के मिश्रण से तैयार किया जाता है सर्वप्रथम इसका भोग देवी-देवताओं को लगाने के बाद इसे प्रसाद रूप में परिवार के सभी सदस्यों में बांटा जाता है। इस दिन जगह-जगह खिचड़ी के भण्डारों का भी आयोजन किया जाता है।
दक्षिण भारत का पर्व पोंगल : Pongal Festival 2024
पोंगल का त्योहार विशेष रूप से दक्षिण भारत में मनाया जाता है इसकी अवधि भी मकर संक्रांति के आस-पास ही होती है। यह तमिल समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक बहु दिवसीय हिंदू फसल उत्सव है। यह उत्सव तमिल सौर कलैण्डर के अनुसार ‘‘ताई‘‘ महीने की शुरूआत में मनाया जाता है।
पोंगल त्योहार के 3 दिनों को भोगी पोंगल, सूर्य पोंगल और मट्टू पोंगल कहा जाता है। कुछ तमिल समुदाय पोंगल के चौथे दिन को कानुम पोंगल के रूप में भी मनाते हैं। पोंगल का शाब्दिक अर्थ है ‘‘उबालना‘‘। इस दिन गुड अर्थात कच्ची चीनी के साथ दूध में चावल को उबालकर विशेष व्यंजन मनाया जाता है जिसे पहले अपने आराध्य को भोग लगाया जाता है। यह तमिलनाडू के साथ-साथ कर्नाटक, आन्ध्र-प्रदेश, तेलंगाना तथा पुडुचेरी में भी मनाया जाता है। Lohri, Makar Sankranti, Pongal
पोंगल त्योहार की प्राचीनता : Pongal Festival
पोंगल की जड़ें संगम काल से हैं। किंवदंतियों के अनुसार यह उत्सव लगभग 2000 वर्ष पुराना है। यह उत्सव मुख्यतः सूर्य देव, प्रकृति की शक्तियों तथा खेत-खलिहान, जानवरों के साथ-साथ कृषि का समर्थन करने वाले लोगों को धन्यवाद देने के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसे मनाने का श्रेय चोल वंश के प्रतापी राजा कुलोत्तुंग प्रथम को जाता है।
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Very interesting and knowledgeable information about our festivals 🙏🏻😊
Thanks! for your comment. 🙂