ईश्वर का धन्यवाद | Moral Story
ईश्वर का धन्यवाद !
Moral Story एक थे राजा सूर्यसेन। वह बहुत बड़े दानी थे। उनका प्रतिदिन का नियम था सवेरे जल्दी उठते नदी में स्नान करके पूजा-पाठ करते तथा उसके बाद गरीबों को दान दिया करते तब जाकर वह अन्न-जल ग्रहण किया करते थे। उनकी दयालुता की भावना देखकर उनके आस-पड़ोस के शत्रु राजा भी मन ही मन बहुत प्रभावित थे।
राजा सूर्यसेन के राज्य में प्रतिदिन सैंकड़ों की संख्या में भिक्षुक आते थे, उन भिक्षुकों में दो व्यक्ति जिनका नाम रोहन व सोहन था कई वर्षों से लगातार राजमहल में आते थे। अब तो राजा उनको नाम से भी पहचानने लगे थे वे दोनों बहुत ईमानदार थे अर्थात जितना एक दिन के लिये पर्याप्त होता उतना ही दान लिया करते थे।
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कई बार राजा ने उनको अधिक दान देने का प्रयास भी किया किन्तु वे दोनों सिर्फ उतना ही दान स्वीकारते जिससे उनको दो वक्त का खाना मिल जाये। दोनों में एक विशेष बात यह थी कि दान लेने के बाद रोहन तो राजा का धन्यवाद करता किन्तु सोहन कहता था हे ईश्वर! आपका धन्यवाद (ईश्वर का धन्यवाद)।
राजा को लगता कि दान तो मैं देता हूं लेकिन सोहन ने कभी मुझे धन्यवाद नहीं करता बल्कि हर बार यही कहता है कि ईश्वर का धन्यवाद। यहां पर राजा का अहंकार जाग जाता था ,वह चाहता था कि सोहन भी रोहन की तरह ही उनको धन्यवाद दे।
एक बार जब राजा दान दे रहे थे तो हमेशा की तरह रोहन ने कहा – महाराज आपका बहुत-बहुत धन्यवाद तो सोहन ने दान लेने के बाद कहा ईश्वर का बहुत-बहुत धन्यवाद। उस दिन राजा ने सभी भिक्षुओं को तो जाने दिया किन्तु उन दोनों को राजमहल में रुकने को कहा। राजा ने पहले रोहन को अपने बाग में भेजा।
रोहन बड़ा खुश था कि राजा ने मुझे अपने बाग में जाने का अवसर दिया वह बाग की खूबसूरती में इतना खो गया कि आस पास का ध्यान ही ना रहा। वहां पर राजा ने धन से भरी एक पोटली रखी थी जिसकी ओर उसका ध्यान ही ना गया। अब वह वापस आ गया राजा ने पूछा कि क्या तुम्हें वहां कुछ मिला ? रोहन बोला नहीं महाराज, मुझे तो कुछ भी नहीं मिला लेकिन बाग बहुत ही अच्छा था।
अब राजा ने सोहन को वहां भेजा। वह मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देता हुआ बाग में घूम रहा था कि उन्होंने उसे यह अवसर दिया कि आज राजा के बाग में घूमने का मौका मिला। वह बड़ा सतर्क होकर वहां चल रहा था तभी उसकी नजर उस पोटली पर पड़ी जिस पर रोहन की नजर नहीं पड़ी थी। वह वापस आया और राजा को वह धन से भरी पोटली राजा को दे दी।
अगले दिन राजा ने रोहन को एक बड़ा सा कटहल दिया और सोहन को मात्र कुछ रूपये दे दिये सोहन ने हमेशा की तरह ईश्वर को धन्यवाद दिया। अब रोहन बेमन से उस कटहल को लेकर चल दिया और सोचने लगा कि राजा ने आज आखिर यह क्या दिया है और उसने बाजार जाकर वह कटहल सब्जी वाले को बेच दिया।
सोहन ने उन रूपयों का कटहल उसी सब्जी वाले से खरीदा और संयोग से ये वही था जिसे रोहन ने बेचा था। घर जाकर जब उसने वह काटा तो उसकी आंखे खुली की खुली रह गईं उस कटहल में से सोने की कुछ अशर्फियां निकलीं (Moral Story)।
अगले दिन भिक्षा के लिए अकेला रोहन ही राजमहल पहुंचा तो राजा ने उससे सोहन के बारे में पूछा ।
रोहन ने राजा से बताया कि वह अब नहीं आयेगा उसे कहीं से सोने की अशर्फियां मिल गयी हैं अब वह एक अमीर आदमी बन चुका है। राजा ने अपना माथा पकड़ लिया। राजा ने सोचा कि मैंने कितना प्रयास किया कि रोहन दान के लिये हमेशा मुझे ही धन्यवाद देता है इसकी मदद की जाये लेकिन इसके भाग्य में धन था ही नहीं, सोहन ठीक ही हर बात के लिए ईश्वर का धन्यवाद करता था।
राजा का घमण्ड टूट चुका था अब राजा ने कहा हे ईश्वर! मुझे सही राह दिखाने के लिए आपका धन्यवाद।
Moral Story शिक्षा :- हमारे पास जो कुछ भी है वह ईश्वर की कृपा से ही प्राप्त हुआ है इसलिए हमें घमण्ड तथा दूसरों से ईर्ष्या कभी नहीं करनी चाहिये।
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