Ashtalakshmi Stotram : श्रीअष्ट लक्ष्मी स्तोत्रम हिन्दी अर्थ सहित

Ashtalakshmi Stotram : श्रीअष्ट लक्ष्मी स्तोत्रम हिन्दी अर्थ सहित

 

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Ashtalakshmi Stotram में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, माता लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है। वह धन जो सांसारिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, वह धन जो किसी भी व्यक्ति के जीवन-यापन के लिए जरूरी है, उसी धन की प्रदायक हैं मां लक्ष्मी।

Ashtalakshmi Stotram

शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी जी की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय पर हुई थी जो बाद में श्री विष्णु की भार्या अर्थात पत्नी बनीं। आज की पोस्ट Ashtalakshmi Stotram में हम अष्ट लक्ष्मी के बारे में जानेंगे तथा साथ ही उनसे सम्बन्धित स्तोत्र का हिन्दी अर्थ भी समझेंगे जिसका प्रतिदिन पाठ करने से मनुष्य को इन अष्टलक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है।

ऐसा व्यक्ति सदा धन-धान्य से परिपूर्ण तो रहता ही है साथ ही उसे अपने जीवन में कभी भी दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ता वरन वह अन्य लोगों की भी आर्थिक रूप से सहायता करने में सक्षम हो जाता है। तो आईये, हम भी अष्ट लक्ष्मी Ashtalakshmi Stotram स्तोत्र का हिन्दी अर्थ समझें तथा माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करें।

Ashtalakshmi Stotram

Ashtalakshmi Stotram

 

अष्टलक्ष्मी कौन कौन सी है?

 

1. आदि लक्ष्मी स्तोत्र

 

Adi lakshmi

 

सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि, चंद्र सहोदरि हेममये।
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनी, मंजुल भाषिणी वेदनुते।
पकड्जवासिनि देवसुपूजित, सद्गुण वर्षिण शान्तियुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, आदिलक्ष्मी परिपालय माम्॥

भावार्थ – हे देवी ! तुम सभी भले मनुष्यों के द्वारा वन्दित हो, सुंदरी, माधवी, चन्द्र की बहन हो, स्वर्ण की मूर्त रूप हो, मुनिगणों से घिरी हुई हो। मोक्ष को प्रदान करने वाली, मृदु तथा मधुर शब्द कहने वाली हे देवी ! आप वेदों के द्वारा प्रशंसित हो। कमल के पुष्प में निवास करने वाली और सभी देवों के द्वारा पूजित, अपने भक्तों पर सद्गुणों की वर्षा करने वाली, शान्ति से परिपूर्ण तथा मधुसूदन की प्रिय, हे देवी आदि लक्ष्मी ! आपकी जय हो, आप सदैव मेरी रक्षा करें।

 

2. विद्या लक्ष्मी स्तोत्र

Vidya Lakshmi

प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि, शोकविनाशिनि रत्नमये।
मणिमय भूषित कर्णविभूषण, शान्ति समावृत हास्यमुखे।
नवनिधिदायिनी कलिमलहारिणि, कामित फलप्रद हस्तयुते।
जय जय हे मधूसुन कामिनी, विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम्॥

भावार्थ – सुरेश्वरि को, भारति, भार्गवी, शोक का विनाश करने वाली, रत्नों से शोभित देवी को प्रणाम है। विद्यालक्ष्मी के कर्ण अर्थात कान मणियों से विभूषित हैं, उनके चेहरे का भाव शांत और मुख पर मधुर मुस्कान है। हे देवी ! तुम नव निधि प्रदान करने वाली हो, कलियुग के दोष हरने वाली हो, अपने वरद हस्त से मनचाहा वर प्रदान करती हो। मधुसूदन की प्रिय हे देवी विद्या लक्ष्मी ! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।

 

3. धन लक्ष्मी स्तोत्र

 

Dhan Lakshmi

 

धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि – दिन्धिमी दुन्दुभि नाद सुपूर्णमये।
घुमघुम घुड्घुम घुड्घुम घुड्घुम शड्ख निनाद सुवाद् यनुते।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते।
जय जय हे कामिनी धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम्॥

भावार्थ – दुन्दुभी (ढोल) के धिमि -धिमि स्वर से तुम परिपूर्ण हो, घुम-घुम-घुंघुम की ध्वनि करते हुए शंखनाद से तुम्हारी पूजा होती है। वेद, पुराण तथा इतिहास के द्वारा पूजित देवी तुम भक्तों को वैदिक मार्ग दिखाती हो, मधुसूदन की प्रिय हे देवी धन लक्ष्मी ! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।

 

4. धान्य लक्ष्मी स्तोत्र

 

Dhanya Lakshmi

 

अयिकलि कल्मष नाशिनी कामिनि वैदिक रुपिणि वेदमये।
क्षीर समुद्भव मड्गल रूपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते।
मड्गलदायिनी अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते।
जय जये हे मधुसूदनकामिनि धान्यलक्षिम परिपालय माम्॥

भावार्थ – हे माता धान्यलक्ष्मी ! तुम प्रभु की प्रिय हो, कलयुग के दोषों का नाश करती हो, तुम वेदों का साक्षात रूप हो, तुम क्षीरसमुद्र से जन्मी हो, तुम्हारा रूप मंगल करने वाला है, मंत्रों में तुम्हारा निवास है और तुम मंत्रों से ही पूजित हो। तुम सभी को मंगल प्रदान करती हो, तुम अम्बुज (कमल) में निवास करती हो, सभी देवगण तुम्हारे चरणों में आश्रय पाते हैं, मुधसूदन की प्रिय हे देवी धान्य लक्ष्मी ! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।

 

5. गज लक्ष्मी स्तोत्र

 

Gaja Lakshmi

 

जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये।
रधगज तुरगपदाति समावृत, परिजन मंडित लोकनुते।
हरिहर ब्रम्ह सुपूजित सेवित, ताप निवारिणी पादयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम्॥

भावार्थ – हे दुर्गति का नाश करने वाली भगवान श्री विष्णु की प्रिया ! आप सभी प्रकार के फल (वर) देने वाली हो। शास्त्रों में निवास करने वाली देवी तुम्हारी जय -जयकार हो, तुम रथों, हाथी-घोड़ों तथा सेनाओं से घिरी हुई हो तथा सभी लोकों में पूजित हो। तुम हरि, हर (शिव) और ब्रह्मा के द्वारा पूजित हो। तुम्हारे चरणों में आकर सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं, मधुसूदन की प्रिय हे देवी गज लक्ष्मी ! तुम्हारी जय हो, जय हो। तुम मेरा पालन करो।

 

6. संतान लक्ष्मी स्तोत्र

 

Santan Lakshmi

 

अयि खगवाहिनी मोहिनी चक्रिणी, रागविवर्धिनि ज्ञानमये।
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणी, सप्तस्वर भूषित गाननुते।
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर, मानव वन्दित पादयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम्॥

भावार्थ – हे देवी ! गरुड़ तुम्हारा वाहन है। मोह में डालने वाली, चक्र धारण करने वाली, राग (संगीत) से तुम्हारी पूजा होती है, तुम ज्ञानमयी हो, तुम समस्त लोक का हित करती हो, सप्त स्वरों के गान से तुम प्रशंसित हो। समस्त सुर-असुर, मुनि और मनुष्य तुम्हारे चरणों की वंदना करते हैं। मधुसूदन की प्रिय, हे देवी संतान लक्ष्मी ! तुम्हारी जय हो, तुम मेरा पालन करो।

 

7. विजय लक्ष्मी स्तोत्र

 

Vijaya Lakshmi

 

जय कमलासनि सदगति दायिनी ज्ञानविकासिनि गानमये।
अनुदिन मर्चित कुड्कुम धूसर भूषित वसित वाद्यनुते।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शड्करदेशिक मान्यपदे।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजलक्ष्मि परिपालय माम्॥

भावार्थ – कमल के आसन पर विराजित देवी ! तुम्हारी जय हो, तुम भक्तों के ब्रह्मज्ञान को बढ़ाकर उन्हें सदगति प्रदान करती हो। तुम मंगलगान के रूप में व्याप्त हो, प्रतिदिन तुम्हारी अर्चना होने से तुम कुंकुम से ढकी हुई हो, मधुर वाद्यों से तुम्हारी पूजा होती है। तुम्हारे चरणों के वैभव की प्रशंसा आचार्य शंकर और देशिक ने कनकधारा स्तोत्र में की है। मधुसूदन की प्रिय हे देवी विजय लक्ष्मी ! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।

 

8. धैर्य लक्ष्मी स्तोत्र

 

Dhairya Lakshmi

 

जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि, मन्त्र स्वरूपिणि मन्त्रमये।
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते।
भवभयहारिणि पापविमोचनि, साधु जनाश्रित पादयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, धैर्यलक्ष्मि सदा पालय माम॥

भावार्थ – हे वैष्णवी ! तुम विजय का वरदान देती हो, तुमने भार्गव ऋषि की कन्या के रूप में अवतार लिया है। तुम मंत्र स्वरूपिणी हो, मंत्रों में बसती हो। देवताओं के द्वारा पूजित हे देवी ! तुम शीघ्र ही पूजा का फल प्रदान करती हो। तुम ज्ञान में वृद्धि करती हो, शास्त्र तुम्हारा गुणगान करते हैं। तुम सांसारिक भय को हरने वाली, पापों से मुक्ति देने वाली हो, साधू जन तुम्हारे चरणों में आश्रय पाते हैं। मधुसुदन की प्रिय हे देवी धैर्य लक्ष्मी ! तुम्हारी सदा जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।

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