बिना सोचे समझे काम करना : Bina Soche Samjhe Kaam Karna

बिना सोचे समझे काम करना  Bina Soche Samjhe Kaam Karna

Bina Soche Samjhe Kaam Karna

एक था राजा। बहुत संपन्न तथा बड़ा शक्तिशाली। आस-पास के राज्यों के राजा उससे भयभीत रहते तथा कभी उसके राज्य पर आक्रमण तो दूर की बात उसके राज्य की ओर आंख उठाकर भी ना देखते। एक समय की बात है उस राजा की पत्नी गर्भवती थी राजा उसकी बड़ी देखभाल करता था।

समय बीता कुछ समय बाद राजा को किसी कारणवश अपनी गर्भवती पत्नी को छोड़कर दूर देश में जाना पड़ा उसने उसकी देखभाल के लिये दास-दासियों एवं चिकित्सकों को रखा हुआ था। कई वर्ष बीत गये थे राजा को एक संत-महात्मा का सानिध्य प्राप्त हुआ जिन्होंने राजा से कहा था कि कोई भी काम करने से पहले उसके सम्बन्ध में खूब सोच-विचार लो क्रोध तथा आवेश में कोई भी निर्णय कदापि नहीं लेना चाहिये। 

Bina Soche Samjhe Kaam Karna

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Bina Soche Samjhe Kaam Karna

कुछ वर्षाें बाद जब राजा वापिस अपने राज्य में लौटा तो वह अपनी रानी व अपनी संतान से मिलने के लिये अत्यंत आतुर था और बड़ा प्रसन्न था इसलिये वह सीधा अपनी रानी के शयन कक्ष में जा पहुंचा। किन्तु क्या देखता है कि एक पुरूष, जिसने पगड़ी पहन रखी थी वह भी रानी के शयन कक्ष में शयन कर रहा था।

राजा को अत्यधिक क्रोध आया उसने एक क्षण में अपनी तलवार म्यान से निकाली और निर्णय लिया कि इसी क्षण दोनों की हत्या कर देगा। तभी उसे उन संत की बात याद आई कि आवेश में कोई निर्णय नहीं लेना चाहिये तोे क्रोध शान्त कर उसने अपनी तलवार को पुनः अपनी म्यान के अन्दर रख लिया।

इसी बीच रानी की आंख खुल गयीं तो वह अपनी पति को अचानक वापस आया देख बड़ी प्रसन्न हुयी। राजा ने रानी से उस पुरूष के सम्बन्ध में पूछा तो रानी उसके पास गयी और बोली – उठ पुत्री! देख तेरे पिताश्री आये हैं। राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ तो रानी ने बताया कि महाराज यह आपकी पुत्री है जो इतनी बड़ी हो गयी है, आपकी अनुपस्थिति में इसकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुये मैंने इसके वेष को छिपाकर एक पुरूष का वेष धारण कराया।

Bina Soche Samjhe Kaam Karna

यह सुनकर राजा की आंख भर आयीं उसने मन-ही-मन उन महात्मा का धन्यवाद दिया कि आज उनके दिये हुये ज्ञान ने उसे अपनी निर्दोष पत्नी तथा अपनी पुत्री के हत्या के पाप से बचा लिया तथा उसने दोनों को अपने हृदय से लगा लिया।

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इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है ? –

1.  हमें कभी भी बिना सोचे समझे काम करना नहीं (Bina Soche Samjhe Kaam Karna) चाहिये, अन्यथा यह सदैव हमारे लिये दुखदाई ही होते हैं|

2. हमें सदैव संत, महात्मा, अपने गुरुजनों अपने से बड़ों की आज्ञा में ही रहना चाहिये |