चूहे ने बनाया राजकोष का मंत्री | Dead mouse story in hindi

चूहे ने बनाया राजकोष का मंत्री Dead mouse story in hindi

Dead mouse story in hindi एक समय की बात है रमन नाम का एक युवक काम की तलाश में निकला था किन्तु उसे कोई काम ना मिला, कुछ भी ना खाने के कारण भूख भी लग रही थी। तभी उसकी नजर एक चीनी व्यापारी की दुकान पर गई उसने सोचा कि शायद यहां कुछ काम मिल जाये। ऐसा सोचकर वह दुकान में गया तथा बोला सेठ जी ! मैं काम की तलाश में हूं कुछ काम हो तो बता दो।

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व्यापारी दयालु स्वभाव का था वह रमन से बोला कि ‘‘अभी तो कोई काम नहीं है तुम भूखे लग रहे हो, लो ये कुछ पैसे रख लो और भोजन कर लेना।‘‘ रमन एक ईमानदार लड़का था उसने कहा कि ‘‘मैं यह पैसे नहीं रख सकता मैं तो परिश्रम करके ही धन कमाना चाहता हूं, मदद के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।‘‘ ऐसा कहकर वह बिना पैसे लिये ही लौट गया।

अभी वह रास्ते में जा ही रहा था कि ठीक उसी समय उस देश के राजा अपने राजगुरु के साथ गांव में प्रजा का हाल जानने के लिये भ्रमण कर रहे थे। राजगुरु उन्हें बता रहे थे कि राजन! यदि एक व्यक्ति ईमानदार, परिश्रमी एवं दूरदर्शी हो तो वह अपने आस-पास की परिस्थितियों से भी अपना भविष्य संवार सकता है। चलते-चलते अचानक उन्हें रास्ते में एक मरा हुआ चूहा दिखाई दिया।
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राजगुरु ने कहा राजन, यदि व्यक्ति चाहे तो इस मरे हुये चूहे से भी धन कमा सकता है। यह सारी बातें रमन सुन रहा था उसने सोचा राजगुरु एक विद्वान व्यक्ति हैं यदि उन्होंने यह बात कही है तो सच ही होगी। ऐसा सोचकर उसने वह मरा हुआ चूहा उठा लिया और घर की ओर चल दिया। रास्ते में एक आदमी अपनी पालतू बिल्ली के साथ जा रहा था बिल्ली ने जब उस चूहे को देखा तो उसके मुंह में पानी आ गया तथा वह शोर मचाने लगी।

बिल्ली का मालिक समझ गया और उसने रमन से चूहे को खरीदने की इच्छा व्यक्त की। रमन को तो इसी मौके की तलाश थी उसने तुरंत वह चूहा बेच दिया उस आदमी ने चूहे के बदले में उसको कुछ पैसे दिये। उन पैसों को देखकर रमन का हौसला बढ़ गया था उसने सोचा कि राजगुरु ठीक ही कहते थे कि यदि व्यक्ति चाहे तो मरे चूहे  से भी धन कमा सकता है।

उसने वह दिन बिना खाये-पिये ही व्यतीत कर दिया और अगले दिन उन पैसों से शरबत बनाने का सामान खरीदकर शरबत बनाया और गांव के मुख्य चैराहे पर जाकर बेचने लगा। गर्मी के दिन थे सो देखते ही देखते सारा शरबत बिक गया और उस दिन उसकी अच्छी कमाई हो गई थी किन्तु थोड़ा सा शरबत अभी बच गया था। तभी उसकी नजर खेत में काम करते हुये दो किसानों पर पड़ी।
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गर्मी में पसीने से भीगे हुये वह किसान पिता-पुत्र थे। रमन के मन में दया आ गयी और उसने वह शरबत उन्हें मुफ्त में पिला दिया। किसानों ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि भविष्य में कोई काम हो तो बताना, रमन बड़ा प्रसन्न हुआ और उस दिन उसने पेट भरकर खाना खाया।

अगले दिन वह जंगल से लकड़ी काट कर बेचने जा रहा था कि उसे एक कुम्हार दिखाई दिया जिसे मिट्टी के बर्तन आग में पकाकर राजभवन ले जाने थे तथा आग में बर्तन पकाने के लिये लकड़ियों की आवश्यकता थी। कुम्हार ने रमन से वह सारी लकडियां खरीद लीं और पूरे सौ रूपये दिये। लकड़ियां कुम्हार को बेचकर जब रमन घर जा रहा था तो उसे एक धनी व्यापारी मिला जो अपने घोड़ों के साथ थका-हारा निराश मन से गांव के बाहर बैठा हुआ था।

रमन ने जब उसकी निराशा का कारण पूछा तो उसने बताया कि मेरे घोड़े भूखे हैं। ये भूख-प्यास से अत्यंत व्याकुल हैं जिस कारण एक कदम भी नहीं चल पा रहे हैं यदि किसी तरह इनके लिए कुछ घास का प्रबन्ध हो जाता तो ये मेरे साथ वापस शहर जा पाते। रमन ने कहा कि वह व्यापारी की मदद कर सकता है तो व्यापारी बोला कि यदि वह उसकी मदद करेगा तो वह एक घोड़ा तथा 10 सोने की मुहर उसे देगा।

अब रमन को उन्हीं किसानों की याद आ गयी जिन्हें उसने शरबत पिलाया था वह तुरंत वहां पहुंचा।  किसानों ने उसे पहचान लिया तथा सौ रूपये के बदले बहुत सारी ताजी हरी घास रमन को दे दी। किसानों ने वह घास एक बैलगाड़ी पर रखवाकर रमन के साथ यह कहते हुये भेज दी कि जब तुम्हारा काम हो जाये तो बाद में वह बैलगाड़ी को वापस कर दे।

रमन ने उन्हें धन्यवाद दिया और सारी हरी-हरी घास लेकर उस व्यापारी के पास पहंुच गया। हरी-हरी ताजी घास खाकर उन घोड़ों ने अपनी भूख मिटायी और वह चलने को तैयार हो गये। व्यापारी ने अपने वादे के अनुसार रमन को 10 सोने की मुहरें और एक घोड़ा ईनाम में दिया जिसे लेकर वह किसानों की बैलगाड़ी पहुंचाने चल दिया।

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अब रमन के पास अच्छा खासा धन जमा हो चुका था। अगले दिन वह राजभवन में गया और राजगुरु से बोला – गुरुजी! आपके द्वारा बताई गयी बातों ने ही मेरा मार्गदर्शन किया और उसके फलस्वरूप मैं इतना धनी व्यक्ति बन सका। राजगुरु को कुछ समझ ना आया तो उसने उन्हें मरे हुये चूहे वाली घटना की याद दिलाई और बोला-‘‘ राजगुरु वह सारी बातें मैंने सुन ली थीं।

मैं आपको कुछ सोने की मुहरें गुरुदक्षिणा स्वरूप देना चाहता हूं कृपया स्वीकार कर मुझे कृतार्थ करें।‘‘ राजगुरु उसकी सच्चाई, ईमानदारी तथा उसके परिश्रमी स्वभाव को देखकर बहुत प्रसन्न हुये। उन्होंने उसे गले लगा लिया और कहा कि मुझे तुम्हारी ही तरह ईमानदार और परिश्रमी युवक की तलाश थी। वह राजा से बोले- राजन! यह युवक हमारे राजकोष की देखभाल हेतु पूरी तरह से उपयुक्त है कृपया इसको राजकोष के अधिकारी के रूप में नियुक्त करने पर विचार करें।

राजा भी रमन जैसे परिश्रमी युवक को पाकर अत्यन्त प्रसन्न हुये और उन्होंने राजगुरु के निर्देशानुसार उसकी नियुक्ति राजभवन में राजकोष मंत्री के रूप में कर दी।

Dead mouse story in hindi: शिक्षा

अपने कार्य में पूर्ण कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी तथा परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता।