Do Sir Wala Kachua : दो सिर वाला कछुआ
Do Sir Wala Kachua Ki Kahani
Do Sir Wala Kachua पुष्पक वन में नदी के किनारे एक कछुआ रहता था। वैसे तो कछुए का एक ही सिर होता है लेकिन उस कछुये की विशेषता यह थी कि उसके दो सिर थे। वह जहां भी जाता सभी उसका मजाक उड़ाते तो उसे बहुत बुरा लगता इससे वह निराश हो जाता और उनसे दूर जाकर एकान्त में बैठ जाता था।
अब उसे एकान्त में रहने की आदत हो गयी थी वह अकेला ही रहता और जो कुछ मिल जाता उसे खा लेता था। बाकी सब तो कछुये के साथ ठीक था किन्तु एक समस्या थी। समस्या यह थी कि एक सिर की दूसरे सिर से बिलकुल बनती ना थी। वे हमेशा ही एक-दूसरे के खिलाफ रहते थे। यदि कोई मीठा फल मिलता तो वह अपने दूसरे सिर को न देता और दूसरे सिर को कुछ मिलता तो वह पहले सिर को न देता।
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एक दिन वह कछुआ भोजन की तलाश में इधर-उधर घूम रहा था अचानक उसके पहले वाले सिर को लाल बड़ा-सा सेब दिखाई दिया। वह झट से वहां गया और फल खाने लगा तो दूसरा सिर बोला कि मुझे भी थोड़ा-सा खाने को दो। यह सुनकर उस कछुये के पहले सिर ने कहा-हम दोनों का पेट तो एक ही है मैं खाउं या तुम खाओ,
पेट तो हम दोनों का ही भरेगा। इस पर दूसरे ने कहा यह तो ठीक है, पेट तो भर जायेगा किन्तु मैं तो इस सेब के मीठेपन का स्वाद नहीं ले पाउंगा।
Do Sir Wala Kachua दूसरे सिर ने कहा कोई बात नहीं वैसे भी इस फल पर सबसे पहले मेरी दृष्टि पड़ी है इसीलिये इसे मैं ही खाउंगा और मैं तुम्हें इसे नहीं दूंगा। इस पर दूसरा सिर क्रोध से भर गया और मन-ही-मन वह पहले वाले सिर से बदला लेने की सोचने लगा। वह दिन-रात यही सोचता कि कैसे पहले सिर को उसकी धूर्तता का दण्ड दिया जाये तथा उसे एक अच्छा सबक सिखाया जाये।
एक दिन की बात है वह कछुआ खाने की तलाश में घूम रहा था तो उसे एक अजीब-सा लेकिन बहुत सुन्दर फल दिखाई दिया वह फल आज से पहले उसने कभी भी नहीं देखा था। वह उसकी ओर बढ़ा तो पहले सिर ने टोका कि अरे, अरे ! उस फल की ओर क्यों बढ़ रहे हो ? वह एक जहरीला फल है।
पर दूसरा सिर तो बस उसे नीचा दिखाने का मौका ढूंढ रहा था वह बदला लेने के चक्कर में सब कुछ भूल गया था उसे लगा कि पहला सिर झूठ बोल रहा है।
वह बोला कि तू चुप रह! मेरी मर्जी मैं जो चाहे खाउं तुझे इससे क्या? Do Sir Wala Kachua इस पर पहला सिर बोला अरे यह एक जहरीला फल है इसे खाकर हम दोंनों की मृत्यु हो जायेगी हम दोनों का पेट तो एक ही है। पर वह कहां मानने वाला था वह बोला उस दिन जब तू सेब खा रहा था तो तूने मुझे कहां दिया था।
अब ज्ञान बांटना बंद कर और चुप रह। पहले सिर ने बहुत समझाया और मना किया किन्तु दूसरे सिर ने उसकी एक ना सुनी और वह फल खा गया कुछ देर बाद ही कछुये को भयंकर दर्द होने लगा वह मारे दर्द के कराहने लगा।
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कछुये के पहले वाले सिर को जड़ी-बूटी का ज्ञान था वह बोला – अब हमें जल्दी से नदी किनारे उगी एक विशेष प्रकार की घास खानी होगी तभी इस दर्द से छुटकारा मिल सकता है। जल्दी ही दोनों नदी के किनारे पहुंचे । दोनों ने वह घास खाई और दर्द से छुटकारा पाया।
Do Sir Wala Kachua अब दोनों ने अपने व्यवहार के लिए एक-दूसरे से क्षमा मांगी, साथ ही भविष्य में कभी भी झगड़ा न करने का वादा किया।
Do Sir Wala Kachua शिक्षा :- क्रोध तथा ईर्ष्या हमारी सोचने-समझने की क्षमता को खत्म कर देते हैं इनसे सदैव हानि ही होती है अतः हमें क्रोध तथा ईर्ष्या से सदैव दूरी बनाकर रखना चाहिए।
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