भक्ति का फल : Bhakti ka Fal
Bhakti ka Fal
Bhakti ka Fal राजनंद गांव में एक जमींदार रहता था। उसके पास बहुत बड़े क्षेत्र में खेती के लिये जमीन थी जिसमें सैकड़ों श्रमिक काम किया करते थे। जमींदार निर्दयी था तथा वह उन बंधुआ मजदूरों से खूब काम लिया करता था। बहुत से मजदूर तो उसके व्यवहार को देखकर काम छोड़कर चले गये किन्तु जो बेचारे मजबूर थे तथा जिनके पास कमाई का और कोई साधन ना था वे चुपचाप काम करते रहते।
उन्हीं में से एक मजदूर था रमेश। रमेश बहुत बड़ा शिवभक्त था उसकी मां उसे बचपन से ही शिवजी के बारे में बताया करती थीं। आश्चर्य की बात यह थी कि रमेश ने आज तक कभी भगवान शिव के दर्शन नहीं किये थे उसे कभी भी मन्दिर जाने का अवसर नहीं दिया गया क्योंकि बंधुआ मजदूरों को उस गांव में मन्दिरों में जाने की मनाही थी। Bhakti ka Fal
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एक दिन रमेश ने निर्णय लिया कि वह आज अपने हिस्से का सारा काम निपटा लेगा और जमींदार से कल का अवकाश लेकर मंदिर जायेगा। अब उसने जमींदार को यह बात बतायी तो उसने मना कर दिया किन्तु रमेश के जोर देने पर वह बोला कि ठीक है मैं तुम्हें कल की छुट्टी दे दूंगा किन्तु तुम्हें आज रात में ही पूरे 40 बीघा जमीन की जुताई करनी होगी।
जमींदार जानता था कि यह काम एक ही रात में कदापि नहीं हो सकता। रमेश भी जान चुका था यह काम असम्भव और यह भी कि जमींदार नहीं चाहता कि वह कल की छुट्टी ले। अब रमेश ने अपना निर्णय त्याग दिया, उस दिन का पूरा काम कर दिया तथा शिव दर्शन की इच्छा त्याग दी और रात को खाना खाकर सो गया।
अगले दिन सुबह उसकी आंख खुली तो उसके घर के पास लोग इकट्ठा हो गये थे और काफी हलचल थी उसने अपनी झोंपड़ी से बाहर आकर देखा तो सब उसकी ओर दौड़ पड़े तथा उसकी जय-जयकार होने लगी। रमेश को कुछ भी समझ ना आया कि आखिर यह क्या हो रहा है। तब एक व्यक्ति बोला धन्य हो रमेश! तुम एक सच्चे शिव भक्त हो एक ही रात में पूरे 40 बीघे जमीन की जुताई तुमने अकेले ही कर दी।
Bhakti ka Fal
यह सुनकर रमेश चकरा गया वह तो पूरी रात सो रहा था जमीन की जुताई कैसे हो गई ? उधर जमींदार को जब पता चला तो वह भी वहां पहुंचा, वह समझ चुका था कि शिवजी का रमेश के ऊपर आशीर्वाद है जो वह इस काम को कर पाया। रमेश समझ चुका था कि यह उसके आराध्य महादेव का ही चमत्कार है। जमींदार ने उसे उस दिन की छुट्टी दे दे थी।
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अब रमेश मन ही मन शिवजी को धन्यवाद देकर मंदिर की ओर चल दिया किन्तु वहां भी उसकी परीक्षा खत्म नहीं हुयी थी। पुजारी जी ने उसे अंदर जाने से रोक दिया कि बंधुआ मजदूरों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है। अब रमेश पूरी तरह निराश हो चुका था पर उसे विश्वास था कि जब ईश्वर ने मेेरी इतनी सहायता की है तो वे आगे भी करेंगे।
ऐसा सोचकर उसने सोचा कि मंदिर के बाहर ही दर्शन कर लिये जायें। बाहर से भगवान शिव के दर्शन पूरी तरह नहीं हो पा रहे थे क्योंकि बाहर उनके ठीक सामने नंदी की बड़ी-सी प्रतिमा थी। रमेश ने काफी प्रयास किया किन्तु वह दर्शन नहीं कर पा रहा था।
उसने सोचा कि शायद उसके भाग्य में प्रभु दर्शन नहीं लिखे हैं, निराश मन से वह वापस जाने को मुड़ा ही था कि अचानक एक चमत्कार हुआ और नंदी की विशालकाय मूर्ति स्वयं सरककर एक ओर हो गयी। रमेश को भगवान शिव के स्पष्ट दर्शन होने लगे थे। वह वहीं दण्डवत होकर भगवान शिव को धन्यवाद देने लगा आखिर आज शिव दर्शन की उसकी आकांक्षा पूर्ण हो गयी ,आंखों से अश्रुधारा बह निकली।
यह सब चमत्कार वही पुजारी भी देख रहे थे जिन्होंने रमेश को प्रवेश की अनुमति देने से स्पष्ट इन्कार कर दिया था। वह समझ गये कि रमेश भगवान शिव का कोई सामान्य भक्त नहीं है। वह रमेश के पास गये और उससे तथा भगवान शिव से क्षमा मांगी। Bhakti ka Fal
उस दिन से उस मन्दिर का द्वार सभी के लिये खोल दिया गया तथा सभी लोग अपने आराध्य भगवान शिव के दर्शन बिना किसी रोक-टोक के पूरी स्वतंत्रता के साथ करने लगे रमेश की शिवभक्ति से सभी श्रमिक बंधुआ मजदूरी के कलंक से मुक्त हो चुके थे।
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