Lalach Ka Fal : लालच का फल

Lalach Ka Fal : लालच का फल

 

Lalach Ka Fal रामू एक परिश्रमी लकड़हारा था। वह रोज सुबह जंगल जाकर सूख चुके पेड़ों की लकड़ियां काटकर लाता और उन्हें बाजार में बेचता था। लकड़ियों के व्यापारी भी उसकी प्रशंसा करते कि तुम जंगल के बारे में अच्छी तरह जानते हो इसीलिये तुम जो लकड़ियां लाते हो उनकी क्वालिटी सबसे अच्छी होती है।

रामू एक भला तथा परोपकारी व्यक्ति था किन्तु उसमें एक बुराई थी कि वह जुआ खेलता था। जुए के कारण ही उसका धन नहीं बढ़ पाता था तथा वह अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा इसी बुरी लत में गंवा देता था। 

एक दिन हमेशा की तरह वह जंगल में लकड़ियां काट रहा था अचानक उसे किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी। वह दौड़कर उसी दिशा में गया तो देखा कि एक व्यक्ति घायल अवस्था में वहां पड़ा है। रामू उसे उठाकर घर लाया तथा उसके घावों को साफ करके दवा लगाई। 

वह व्यक्ति रामू की सेवा से बहुत प्रभावित हुआ तथा इसके फलस्वरूप उसे एक बीज दिया। उस व्यक्ति ने उस बीज के बारे में बताते हुये कहा कि इस बीज से एक वर्ष के भीतर ही एक विशेष पेड़ उत्पन्न हो जायेगा,

जिस पर हर मौसम के फल एक साथ आयेंगे तथा अपने-अपने मौसम के हिसाब से जिस मौसम का जो फल होगा वह स्वयं ही गिर जायेगा जैसे गर्मी में आम तथा जाड़ों में सेब आदि। तुम्हें केवल इतना ध्यान रखना है कि इन फलों को खुद से नहीं तोड़ना Lalach Ka Fal।

ऐसा कहकर वह व्यक्ति चला गया। रामू ने वह बीच अपने बगीचे में बो दिया और सचमुच ही एक वर्ष के भीतर एक हरा-भरा विशालकाय पेड़ खड़ा हो गया जिस पर सभी मौसम के फल लदे हुये थे आम, लीची, केले, अनानास तथा शरीफा आदि। रामू यह देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ।

अब रामू ने लकड़ियां काटना छोड़ दिया था। अब तो वह उन फलों को बैलगाड़ी में लादकर बाजार में बेचा करता था। वह गर्मियां में मीठे-मीठे आम तो सर्दियों में लाल-लाल और बड़े-बड़े सेब बाजार में बेचकर खूब सारे पैसे कमाता। रामू अब एक अच्छा व्यापारी बन चुका था और काम में व्यस्त रहने के कारण उसका जुआ खेलना भी लगभग ना के बराबर हो गया था।

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एक दिन शाम के समय वह मण्डी में फल बेचकर लौट रहा था तो उसके कुछ पुराने जुआरी दोस्त मिल गये। वे बोले कि रामू! सुना है कि तुम अच्छे व्यापारी बन गये हो बहुत दिन हो गये चलो जुआ खेलते हैं। पहले तो रामू ने मना किया किन्तु जोर देने पर वह जुआ खेलने को तैयार हो गया किन्तु हमेशा की तरह वह फिर से अपना धन गंवा बैठा Lalach Ka Fal।

अब उसने कहा कि मैं दांव पर एक बैलगाड़ी भरकर आम लगाता हूं। तो अन्य जुआरी बोले कि सर्दियों के इस ठंडे मौसम में तुम आम कहां से लाओगे ? किसी को भी उसकी बातों पर विश्वास न हुआ। रामू आवेश में आ गया और बोला ‘‘ तुम्हें आम से मतलब है उन्हें मैं कहीं से भी लाकर दूं।”

ऐसा कहकर वह वहां से उठा और घर जाकर पेड़ से आमों को तोड़ने लगा। गुस्से में वह उस व्यक्ति की बात को भूल चुका था कि उस पेड़ से स्वयं फल नहीं तोड़ने हैं। रामू ने खूब सारे आम तोड़ लिये तथा उन्हें बैलगाड़ी में लादकर जुए के स्थान पर पहुंच गया। सब आश्चर्यचकित रह गये कि वह इतने अच्छे आम कहां से लाया।

खैर, खेल शुरू हुआ और रामू एक बार फिर से हार गया। निराश मन से जब अपने घर लौटा तो देखा कि वह पेड़ पूरी तरह से सूख चुका है और उस पर एक भी फल नहीं रहा। रामू को अपनी करनी पर बड़ा पछतावा हुआ और वह अपनी जुआ खेलने की बुरी आदत पर बहुत दुःखी हो रहा था

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किन्तु अब कोई फायदा नहीं था क्योंकि अब उसके पास कुछ नहीं बचा था ना पैसा और ना ही फल देने वाला वह चमत्कारी पेड़।

Lalach Ka Fal शिक्षा बुरी आदतों को कठोरता से त्याग देना चाहिये।