Anjaneya Stotram : श्री हनुमान जी व माता अंजनी को समर्पित स्तोत्र।
आंजनेय मति पाटलाननं
कान्चनादि कमनीय विग्रहम् ।
पारिजात तरुमूलवासिनं
भावयामि पवमान नंदनम्॥
भावार्थ — करुणामयी हृदय से परिपूर्ण माता अंजना के पुत्र, गुलाब के समान मुख वाले, हेमकुट पर्वत के समान सुनहरी व सुंदर देह धारण करने वाले, कल्पवृक्ष/पारिजात की जड़ पर निवास करने वाले पवन पुत्र श्री हनुमान जी का मैं हृदय से स्मरण करता हूं।
Anjaneya, with his deep reddish face, with graceful posture like a golden mountain, resident at the base of the Parijata tree, I pray with respect to that pleasing son of Vayu.
नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Anjaneya Stotram में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, जब भी हम श्री हनुमान जी का नाम सुनते हैं तो सबसे पहले हमारे मन में उनकी जो छवि उभरती है वो है प्रभु श्रीराम जी के अनन्य भक्त की तथा अयोध्या से लेकर लंका तक किये गये उनके वीर तथा साहसिक कार्यों की।
वानरराज केसरी तथा माता अंजना के इन सर्वगुण सम्पन्न पुत्र की वीरगाथा का वर्णन हम बचपन से ही सुनते आये हैं। किन्तु आज की पोस्ट में हम श्री हनुमान जी की माता अंजनी को समर्पित स्तोत्र को जानेंगे जिसका पाठ करने से इनके साथ-साथ माता अंजनी की कृपा तथा आशीर्वाद भी सहज ही प्राप्त हो जाता है।
तो आईये, पोस्ट आरंभ करते हैं –
Anjaneya Stotram : श्री आंजनेय स्तोत्र
महेश्वर उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि स्तोत्रम् सर्वभयापहम् ।
सर्वकामप्रदं नॄणां हनूमत् स्तोत्रमुत्तमम् ॥ 1 ॥
तप्तकाञ्चनसङ्काशं नानारत्नविभूषितम् ।
उद्यद्बालार्कवदनं त्रिनेत्रं कुण्डलोज्ज्वलम् ॥ 2 ॥
मौञ्जीकौपीनसम्युक्तं हेमयज्ञोपवीतिनम् ।
पिङ्गलाक्षं महाकायं टङ्कशैलेन्द्रधारिणम् ॥ 3 ॥
शिखानिक्षिप्तवालाग्रं मेरुशैलाग्रसंस्थितम् ।
मूर्तित्रयात्मकं पीनं महावीरं महाहनुम् ॥ 4 ॥
हनुमन्तं वायुपुत्रं नमामि ब्रह्मचारिणम् ।
त्रिमूर्त्यात्मकमात्मस्थं जपाकुसुमसन्निभम् ॥ 5 ॥
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नानाभूषणसम्युक्तं आञ्जनेयं नमाम्यहम् ।
पञ्चाक्षरस्थितं देवं नीलनीरदसन्निभम् ॥ 6 ॥
पूजितं सर्वदेवैश्च राक्षसान्तं नमाम्यहम् ।
अचलद्युतिसङ्काशं सर्वालङ्कारभूषितम् ॥ 7 ॥
षडक्षरस्थितं देवं नमामि कपिनायकम् ।
तप्तस्वर्णमयं देवं हरिद्राभं सुरार्चितम् ॥ 8 ॥
सुन्दरं साब्जनयनं त्रिनेत्रं तं नमाम्यहम् ।
अष्टाक्षराधिपं देवं हीरवर्णसमुज्ज्वलम् ॥ 9 ॥
नमामि जनतावन्द्यं लङ्काप्रासादभञ्जनम् ।
अतसीपुष्पसङ्काशं दशवर्णात्मकं विभुम् ॥ 10 ॥
जटाधरं चतुर्बाहुं नमामि कपिनायकम् ।
द्वादशाक्षरमन्त्रस्य नायकं कुन्तधारिणम् ॥ 11 ॥
अङ्कुशं च दधानं च कपिवीरं नमाम्यहम् ।
त्रयोदशाक्षरयुतं सीतादुःखनिवारिणम् ॥ 12 ॥
पीतवर्णं लसत्कायं भजे सुग्रीवमन्त्रिणम् ।
मालामन्त्रात्मकं देवं चित्रवर्णं चतुर्भुजम् ॥ 13 ॥
पाशाङ्कुशाभयकरं धृतटङ्कं नमाम्यहम् ।
सुरासुरगणैः सर्वैः संस्तुतं प्रणमाम्यहम् ॥ 14 ॥
एवं ध्यायेन्नरो नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते ।
प्राप्नोति चिन्तितं कार्यं शीघ्रमेव न संशयः ॥ 15 ॥
॥ इति ॥
दोस्तों, आशा करते हैं कि पोस्ट Anjaneya Stotram आपको पसंद आई होगी। यदि आप हमें कुछ सुझाव देना चाहें तो कमेंट बॉक्स के माध्यम से दे सकते हैं, अपना अमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद। आपका दिन शुभ व मंगलमय हो।
नमस्कार दोस्तों, मैं सुगम वर्मा (Sugam Verma), Jagurukta.com का Sr. Editor (Author) & Co-Founder हूँ । मैं अपनी Education की बात करूँ तो मैंने अपनी Graduation (B.Com) Hindu Degree College Moradabad से की और उसके बाद मैने LAW (LL.B.) की पढ़ाई Unique College Of Law Moradabad से की है । मुझे संगीत सुनना, Travel करना, सभी तरह के धर्मों की Books पढ़ना और उनके बारे में जानना तथा किसी नये- नये विषयों के बारे में जानकारियॉं जुटाना और उसे लोगों के साथ share करना अच्छा लगता है जिससे उस जानकारी से और लोगों की भी सहायता हो सके। मेरी आपसे विनती है की आप लोग इसी तरह हमारा सहयोग देते रहिये और हम आपके लिए नईं-नईं जानकारी उपलब्ध करवाते रहेंगे। आशा है आप हमारी पोस्ट्स को अपने मित्रों एवं सम्बंधियों के साथ भी share करेंगे। और यदि आपका कोई question अथवा सुझाव हो तो आप हमें E-mail या comments अवश्य करें।