Shiv Mantra : शिव पंचाक्षर स्तोत्र |
श्री शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम्
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Shiv Mantra में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, शिव पंचाक्षर स्तोत्र के रचयिता आदि गुरु शंकराचार्य हैं, जो परम शिवभक्त थे। शिव पंचाक्षर स्तोत्र पंचाक्षरी मन्त्र “नमः शिवाय” पर आधारित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसे सबसे पहला मंत्र माना जाता है।
इसकी मदद से सभी प्रकार की सिद्धियों का प्राप्त किया जा सकता है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने समस्त मानव जाति के कल्याण के उद्देश्य से स्वयं शिव पंचाक्षर मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय‘ की उत्पत्ति की। इसके जाप से मनुष्य के किए गए पापों का नाश होता है।
Shiv Mantra : शिव पंचाक्षर मंत्र
श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र के पाँचों श्लोकों में क्रमशः न, म, शि, वा और य, ये पांच अक्षर आते है। न, म, शि, वा और य अर्थात् “नम: शिवाय”।
श्लोक का आरम्भ क्रमशः न, म, शि, वा और अंत य अक्षर से होती है, इसका अर्थ है कि पहला श्लोक ‘न’ अक्षर से, दूसरा ‘म’ अक्षर से तथा इसी प्रकार अंतिम श्लोक की समाप्ति ‘य’ अक्षर से होती है।
और (शिव पंचाक्षर स्तोत्र हिंदी अनुवाद) श्लोक के अंत में उस अक्षर से विदित भगवान् शिव के स्वरुप को, यानी की ‘न’ अक्षर द्वारा विदित शिव स्वरूप को, ‘म’ अक्षर द्वारा जाने जाने वाले शिवजी के स्वरुप को प्रणाम किया गया है।
Shiv Panchakshar Stotra: क्या है शिव पंचाक्षर स्तोत्र ?
शिव भक्त जब भी शिव जी की पूजा करें तो उन्हें शिव पंचाक्षर मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिये। श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र भगवान शिव की स्तुति के लिए लिखा गया है। इसमें भगवान शिव के स्वरूप एवं गुणों का बखान किया गया है, साथ ही भगवान शिव की वंदना भी की गई है।
Shiv Panchakshar Stotra: श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र (हिंदी अर्थ सहित)
Shiv Mantra
नमः शिवाय का पहला अक्षर “न”
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय,
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय,
तस्मै न काराय नमः शिवाय॥१॥
नागेंद्रहाराय – हे शंकर, आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं
त्रिलोचनाय – हे तीन नेत्रों वाले (त्रिलोचन)
भस्माङ्गरागाय – आप भस्म से अलंकृत हैं
महेश्वराय – महेश्वर हैं
नित्याय – नित्य (अनादि एवं अनंत) है और
शुद्धाय – शुद्ध हैं
दिगंबराय – अम्बर को वस्त्र समान धारण करने वाले दिगम्बर
तस्मै न काराय – आपके “न” अक्षर द्वारा विदित स्वरूप को
नमः शिवायः – हे शिव, नमस्कार है।
भावार्थ : – जिनके कंठ मे साँपों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अंगराग है (अनुलेपन) है,
दिशाँए ही जिनके वस्त्र हैं, उन अविनाशी महेश्वर “न” कार स्वरूप शिव को नमस्कार है।
नमः शिवाय का दूसरा अक्षर “म”
मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय,
नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।
मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय,
तस्मै म काराय नमः शिवाय ॥२॥
मन्दाकिनी सलिल – गंगा की धारा द्वारा शोभायमान
चन्दन चर्चिताय – चन्दन से अलंकृत एवं
नन्दीश्वर प्रमथनाथ – नन्दीश्वर एवं प्रमथ के स्वामी
महेश्वराय – महेश्वर
प्रमथ अर्थात शिव के गण अथवा पार्षद
मन्दारपुष्प – आप सदा मन्दार पर्वत से प्राप्त पुष्पों एवं
बहुपुष्प – बहुत से अन्य स्रोतों से प्राप्त पुष्पों द्वारा
सुपूजिताय – पुजित हैं
तस्मै म काराय – हे “म” अक्षर धारी
नमः शिवाय – शिव आपको नमन है
(भावार्थ): – गंगा की धारा द्वारा जो शोभायमान है, जो चन्दन से अलंकृत हैं, मन्दार पुष्प तथा अन्यान्य पुष्पों से जिनकी सुंदर पूजा हुई है, उन नन्दी के अधिपति और प्रमथ (प्रमथ अर्थात शिव के गण अथवा पार्षद) के स्वामी,
महेश्वर “म” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।
Shiv Mantra
नमः शिवाय का तीसरा अक्षर “शि”
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द,
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्री नीलकण्ठाय वृषध्वजाय,
तस्मै शि काराय नमः शिवाय ॥३॥
शिवाय – हे शिव,
गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय – माँ गौरी के कमल मुख को सूर्य समान तेज प्रदान करने वाले,
दक्षाध्वरनाशकाय – आपने ही दक्ष के दम्भ यज्ञ का विनाश किया था
श्री नीलकण्ठाय – नीलकण्ठ
वृषध्वजाय – हे धर्म ध्वज धारी
तस्मै शि काराय – आपके “शि” अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को
नमः शिवायः – हे शिव, नमस्कार है
(भावार्थ) : – जो कल्याण स्वरूप हैं, पार्वती जी के मुख कमल को विकसित (प्रसन्न) करने के लिये जो सूर्य स्वरूप हैं, जो राजा दक्ष के यज्ञ को नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा मे बैल का चिन्ह है, उन शोभाशाली, श्री नीलकण्ठ “शि” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।
Shiv Mantra
नमः शिवाय का चौथा अक्षर “वा”
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य,
मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय,
तस्मै व काराय नमः शिवाय ॥४॥
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य – वशिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि
मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय – मुनियों द्वारा एवं देवगणों द्वारा पुजित देवाधिदेव
चंद्रार्क वैश्वानरलोचनाय – आपके सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि, तीन नेत्र समान हैं
तस्मै व काराय – आपके “व” अक्षर द्वारा विदित स्वरूप को
नमः शिवायः – हे शिव नमस्कार है
(भावार्थ): – वशिष्ठ, अगस्त्य, और गौतम आदि श्रेष्ठ ऋषि मुनियों ने तथा इन्द्र आदि देवताओं ने जिन देवाधिदेव शंकरजी की पूजा की है। चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं, उन “व” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।
नमः शिवाय का पांचवां अक्षर “य”
यक्षस्वरूपाय जटाधराय,
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय,
तस्मै य काराय नमः शिवाय ॥५॥
यक्षस्वरूपाय – हे यज्ञ स्वरूप,
जटाधराय – जटाधारी शिव
पिनाकहस्ताय – पिनाक को धारण करने वाले (पिनाक अर्थात शिव का धनुष)
सनातनाय – आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन है
दिव्याय देवाय दिगम्बराय – हे दिव्य अम्बर धारी शिव
तस्मै य काराय – आपके “य” अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरुप को
नमः शिवायः – हे शिव, नमस्कार है
भावार्थ: – जिन्होंने यक्षरूप धारण किया है, जो जटाधारी हैं, जिनके हाथ में पिनाक (धनुष) है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर (दिगम्बर अर्थात अम्बर को वस्त्र समान धारण करने वाले अथवा नग्न अवस्था में विचरण करने वाले) देव “य” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।
Shiv Mantra
पंचाक्षर मंत्र के पाठ का लाभ
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः – जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का
पठेच्छिवसन्निधौ – नित्य ध्यान करता है
शिवलोकमवाप्नोति – वह शिव के पुण्य लोक को प्राप्त करता है
शिवेन सह मोदते – तथा शिव के साथ सुख पूर्वक निवास करता है
(भावार्थ): – जो शिव के समीप, इस पवित्र पंचाक्षर मंत्र का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त होता है और
वहां शिवजी के साथ आनन्दित होता है।
॥इति॥
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