Kshama Prarthana : श्री दुर्गा सप्तशती क्षमा-प्रार्थना हिंदी अर्थ सहित
नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Kshama Prarthana में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, सनातन धर्म की पूजा पद्यति के अनुसार जब किसी धार्मिक अनुष्ठान का समापन होता है तब हमारे द्वारा मंत्र आदि के उच्चारण तथा पूजा विधि में हुई त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना की जाती है तथा अपने ईष्ट से अनुष्ठान में हुई गलती अथवा किसी अपराध के लिए क्षमा मांगी जाती है।
आज की पोस्ट में हम श्री दुर्गा सप्तशती के समापन में मां भगवती दुर्गा से की गई क्षमा प्रार्थना को जानेंगे। तो आईये, पोस्ट आरंभ करते हैं –
Kshama Prarthana : श्री दुर्गा सप्तशती क्षमा-प्रार्थना
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥1॥
अर्थ- परमेश्वरी मेरे द्वारा रात – दिन सहस्त्रों अपराध होते रहते हैं ।
‘यह मेरा दास है ’ – यों समझकर मेरे उन अपराधों को तुम कृपापूर्वक क्षमा करो॥1॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि॥2॥
अर्थ- परमेश्वरी मैं आवाहन नहीं जानता , विसर्जन करना नहीं जानता
तथा पूजा करने का ढ़ंग भी नहीं जानता । क्षमा करो ॥2॥
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मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥3॥
अर्थ- देवि सुरेश्वरी मैंने जो मन्त्रहीन , क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है ,
वह सब आपकी कृपा से पूर्ण हो ॥ 3॥
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत्।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः॥4॥
अर्थ- सैकड़ों अपराध करके भी जो तुम्हारी शरण में जाकर ‘जगदम्ब’ कहकर पुकारता है ,
उसे वही गति प्राप्त होती है , जो ब्रह्मादि देवताओं के लिये भी सुलभ नहीं है ॥४॥
सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके।
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरू॥5॥
अर्थ- जगदम्बिके मैं अपराधी हूँ , किंतु तुम्हारी शरण में आया हूँ ।
इस समय दयाका पात्र हूँ । तुम जैसा चाहो , वैसा करो ॥5॥
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अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥6॥
अर्थ- देवि ! परमेश्वरी ! अज्ञान से , भूल से अथवा बुद्धि भ्रान्त होने के कारण मैंने जो न्यूनता या अधिकता कर दी हो , वह सब क्षमा करो और प्रसन्न होओ ॥6॥
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि॥7॥
अर्थ- सच्चिदानन्दस्वरूपा परमेश्वरि ! जगन्माता कामेश्वरि !
तुम प्रेमपूर्वक मेरी यह पूजा स्वीकार करो और मुझपर प्रसन्न रहो ॥७॥
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गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि॥8॥
अर्थ- देवि ! सुरेश्वरि ! तुम गोपनीय से भी गोपनीय वस्तु की रक्षा करनेवाली हो ।
मेरे निवेदन किये हुए इस जपको ग्रहण करो । तुम्हारी कृपा से मुझे सिद्धि प्राप्त हो ॥८॥
॥ इति॥
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