Sankatmochan Hanuman Ashtak: संकटमोचन हनुमानष्टक (हिन्दी अर्थ सहित)
नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Sankatmochan Hanuman Ashtak में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, बजरंगबली जी की पूजा अर्चना में तीन पाठ- श्री हनुमान चालीसा, बजरंगबाण, एवं हनुमानष्टक का विशेष महत्व है| हनुमाष्टक, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि यह समस्त संकटों से उबारने का स्तोत्र है।
किसी घोर विकट परिस्थिति में फंसा हुआ जातक यदि पूर्ण श्रद्धा तथा विश्वास के साथ इसका पाठ करता है तो उसके बड़े-से-बड़े संकटों का निवारण हो जाता है। यही नहीं तंत्र-मंत्र जैसी क्रियाओं के प्रभाव को भी समाप्त करने की क्षमता इस हनुमान अष्टक में है। इसका पाठ करने से भक्तों के सभी प्रकार के दुखों का नाश होता है, अत: भक्तों को इस पाठ का नियमित रूप से भजन करना चाहिए |
किसी भी पाठ को पढ़ने के साथ साथ उसका अर्थ भी अवश्य जानना चाहिये, इसलिए आइए हम सभी इस पाठ का भजन करें और हिन्दी में अर्थ भी जानें –
Sankatmochan Hanuman Ashtak : संकटमोचन हनुमानष्टक
बाल समय रवि भक्षि लियो तब, तीनहूं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब, छांड़ि दियो रवि कष्ट निवारों।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
अर्थ- बचपन में हनुमान जी ने सूर्य को एक मीठा फल जानकर उसे खाने के लिये मुंह में रख लिया जिससे तीनों लोक में अंधेरा छा गया। देवताओं के द्वारा विनती करने पर हनुमान जी ने सूर्य को मुक्त किया जिससे संसार पर आया कष्ट दूर हुआ। यह उनका संकट-मोचन का पहला काम था।
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकी महामुनि शाप दिया तब, चाहिये कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारों। को0….
अर्थ- सुग्रीव, बालि के डर से एक पर्वत की चोटी पर रहते थे। पर्वत की तलहटी में प्रभु श्री राम, लक्ष्मण जी धनुष बाण धारण किये जा रहे थे । तब हनुमान जी ब्राह्मण के रूप में जाकर श्री राम का परिचय प्राप्त कर, आदर से पर्वत पर लिवा लाये जिनकी कृपा से फिर महाराज सुग्रीव के शोक का निवारण हुआ। संसार में ऐसा कौन है जो आपके संकटमोचन नाम को न जानता हो।Sankatmochan Hanuman Ashtak
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौं हम सों जु, बिना सुधि लाए इहां पगु धारो।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब, लाए सिया-सुधि प्रान उबारो। को0….
अर्थ- महाराज सुग्रीव ने सीता जी की खोज के लिये अंगद के साथ वानरों को भेजते समय कहा-यदि सीता माता का पता न लगा पाये तो लौट के मुंह मत दिखाना। आखिर में सब वानर समुद्र के तट पर निराश होकर बैठ गये, हे वीर हनुमान आपने समुद्र पार कर सीता जी का पता लगाया ओर वानर दल के प्राणों की रक्षा की। कौन नहीं जानता आप संकट के हरने वाले हो।
रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय अशोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो। को0….
अर्थ- अशोक वाटिका में रावण ने सीता जी को भय दिखाया और राक्षसियों से सीता को मनाने को कहा। ऐसे समय हनुमान जी आपने वहां पहुंचकर राक्षसों का संहार किया। सीता जी स्वयं को भस्म करने के लिये अशोक वृक्ष से अग्नि की याचना करने लगीं तब आपने अशोक वृक्ष से श्री राम की अंगूठी उनकी गोद में डाली और उनकी चिन्ता दूर की। हे प्रभु ! संसार में कौन है जो आपको संकट मोचन के नाम से नहीं जानता।Sankatmochan Hanuman Ashtak
बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्रान तजे सुत रावण मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारौ।
आनि सजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो। को0….
अर्थ- जब शक्ति बाण लगने से लक्ष्मण जी मूर्छित हो गये, उस समय हनुमान जी लंका से वैद्य सुषेन को उनके घर सहित उठा लाये और द्रोणांचल पर्वत से संजीवनी बूटी लाकर दी जिससे लक्ष्मण जी के प्राण बचे। कौन नहीं जानता आप सब संकटों से उबारने वाले हैं।
रावण जुद्ध जु आन कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेश तबै हनुमान जु, बन्धन काटि सुत्रास निवारो। को0….
अर्थ- रावण ने घोर युद्ध करके नागफांस नामक अस्त्र से श्री राम, लक्ष्मण सहित सभी योद्धाओं को बांध दिया। सारे वानर दल में शोक छा गया, यह बहुत भारी संकट उपस्थित हो गया तब आप पक्षीराज गरुड़ को लाये, गरुड़ ने सब नागों को काट-काटकर फेंक दिया। श्रीराम व लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त किया। आपने स्वयं को संकट में डालकर भगवान के कष्ट दूर किये।
बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पाताल सिधारो।
देविहि पूजि भली विधि सों बलि, देउ सबै मिमि मंत्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो। को0….
अर्थ- पाताल का राजा अहिरावण श्री रघुनाथ जी व उनके भाई लक्ष्मण को उठाकर पाताल ले गया, उन्होंने देवी की उपासना के बाद पूजा के अन्त में दोनों भाइयों की बलि देने की मन्त्रणा भी कर ली। तब आपने अकेले ही अहिरावन तथा उसकी सारी सेना का संहार कर डाला। हे कपि श्रेष्ठ आप संकट मोचन हैं।
काज किये बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसों नहीं जात है टारो।
बेगी हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो। को0….
अर्थ- हे हनुमान महाप्रभु ! आपने दिव्य व्यक्तियों के बड़े-बड़े कार्य संवारे हैं। आप ही विचार करें कि मुझ निर्धन सामान्य मानव का ऐसा कौन सा संकट है जिसका निवारण आप की शक्ति के बाहर है। हे महाप्रभु हमारे संकटों को भी शीघ्र हर लीजिये। संसार में कौन नहीं जानता कि आप संकटों को दूर करने वाले हैं।
Sankatmochan Hanuman Ashtak
॥ दोहा॥
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपी सूर।।
अर्थ- हे हनुमान जी! वानरों का प्राकृतिक रंग पीला होता है किन्तु महातेजस्विता के कारण आपका शरीर लाल हो रहा है। लालिमा किरणों की भांति फूट-फूट कर निकल रही है। आप की पूंछ भी लाल है। आपका शरीर वज्र (इन्द्र देवता के अस्त्र) के समान कठोर एवं मारक है। आप दानवों का नाश करने वाले हैं। हे कपियों में महा शूरवीर आपकी जय हो, जय हो, जय हो।
॥इति॥
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