Hanuman Chalisa : श्री हनुमान चालीसा (हिन्दी अर्थ सहित)
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Hanuman Chalisa में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, कलियुग में श्री हनुमान चालीसा का बहुत अधिक महत्व है तथा इसका प्रत्येक दोहा स्वयं में ही एक सर्वसिद्ध मंत्र है। इस चलीसा को जो भी अपने ह्रदय में धारण कर लेता है बजरंगबली सदैव उसके साथ रहते हैं।
हनुमान चालीसा को लेकर समाज में कुछ लोगों द्वारा भ्रान्तियां भी फैलाई गई हैं जैसे कि महिलाओं को यह चालीसा नहीं पढ़नी चाहिये किन्तु इस चमत्कारिक चालिसा के प्रख्यात रचयिता श्री तुलसी जी ने स्वयं इस चालीसा की अन्तिम पंक्तियों में स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी व्यक्ति चाहे वह नर हो या नारी इसे पढ़कर श्री हनुमान जी महाराज का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है।
वे कहते हैं जो यह पढै़ हनुमान चालीसा होय सिद्ध साखी गौरीसा। “जो यह पढ़ै“ इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि कोई भी इसे पढ़ सकता है। हमारे शास्त्रों में वर्णन है कि यदि किसी मंत्र का हमें अर्थ भी ज्ञात हो तब वह ज्यादा प्रभावी सिद्ध होता है।
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तो आइए हम इन 40 दिव्य मंत्रों का पाठ करते हैं और साथ ही साथ इन मंत्रों का अर्थ समझकर श्री हनुमान जी की विशेष अनुकम्पा प्राप्त करते हैं ।
Hanuman Chalisa : श्री हनुमान चालीसा
(हिन्दी अर्थ सहित)
श्री हनुमान चालीसा
॥ दोहा॥
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरू सुधारि।
बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
अर्थ- मैं अपने श्री गुरु जी के चरण कमलों की धूल (रज) से अपने मन रूपी मुकुट अर्थात दर्पण को स्वच्छ करके श्री रघुवर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं। उनके यश का वर्णन चारों पुरुषार्थ रूपी फलों (धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष) को देने वाला है।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल, बुद्धि, विद्या देहुं मोहि, हरहु कलेश विकार॥
अर्थ- हे पवन कुमार ! मैं जानता हूं कि मैं बुद्धिहीन और निर्बल हूं, इसीलिये आपका स्मरण करता हूं। आप बुद्धि और बल की साक्षात मूर्ति हैं। आप कृपा करके मुझे बल, बुद्धि और सब प्रकार की विद्यायें और ज्ञान प्रदान करें, और मेरे सब दुःख, क्लेश, कष्ट और विकार (पाप) दूर करें।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीश तिहूं लोक उजागर॥
अर्थ- हे हनुमान जी, हे कपीश (वानरों के स्वामी) आप ज्ञान व अनन्त गुणों के सागर हैं। आप तीनों लोकों आकाश, पृथ्वी और पाताल को प्रकाशमान करने वाले हो आपकी जय हो।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
अर्थ- आप राम के दूत (प्रतिनिधि) व असीम एवं अद्वितीय बल, शक्ति के भण्डार (धाम) हैं। आप अंजनिपुत्र व पवनपुत्र नाम से विख्यात हैं।
महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
अर्थ- हे महावीर आप अत्यन्त वीर, पराक्रमी हैं, आपके अंग वज्र के समान बलिष्ठ हैं। आप पाप-बुद्धि को दूर करने वाले व सद्बुद्धि का साथ देते हैं।
कंचन बरन विराज सुवेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
अर्थ- आपका रंग स्वर्ण के समान है, सुन्दर वेशभूषा धारण कर शोभायमान होते हैं, आप कानों में कुण्डल धारण करते हैं, आपके केश घुंघराले व अति सुन्दर हैं।
हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजे।
कांधे मूंज जनेऊ साजै॥
अर्थ- आपके एक आथ में वज्र (गदा) और दूसरे में आपकी विशेष ध्वजा शोभा पाती है। आपके कन्धे पर यज्ञोपवीत शोभायमान रहता है।
शंकर सुवन केसरी नन्दन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन॥
अर्थ- आप शंकर-पुत्र तथा केसरी जी को आनन्द देने वाले हैं। आपकी यश-प्रतिष्ठा महान है। सारा संसार आपकी पूजा करता है।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
अर्थ- आप सभी विद्याओं (युद्ध, योग संस्कृत) के पूर्ण अनुभवी हैं, तथा राम जी के सभी कार्य सम्पन्न करने को व्याकुल रहते हैं।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
अर्थ- आप राम जी की कथायें सुनने के रसिक हैं व आपके हृृदय में राम, लक्ष्मण व सीता माता सदा वास करते हैं।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा॥
अर्थ- आप योग-बल से छोटा रूप बनाकर सीता जी के आगे प्रकट हुए व विशाल एवं भयंकर रूप धारण कर लंका को जला डाला।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचन्द्र के काज संवारे॥
अर्थ- राम-रावण युद्ध में आपने विशाल, भयंकर रूप धारण कर राक्षसों का संहार किया, रामचन्द्र जी के अनेक कार्य सम्पन्न किये।
लाय संजीवन लखन जियाये।
श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥
अर्थ- आपने हिमालय से संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जीवित किया, प्रभु राम ने प्रसन्न हो भाई की भांति आपको छाती से लगा लिया।
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
अर्थ- प्रभु राम जी ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा हे हनुमान! तुम भरत के समान ही मेरे प्रिय भाई हो।
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
अर्थ- सहस्त्रों मुख तुम्हारा यशोगान कर रहे हैं, ये कह कर लक्ष्मीपति भगवान ने पुनः हनुमान जी को गले लगा लिया।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
यम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कवि कोविद कहि सके कहां ते॥
अर्थ- सनकादिक, ब्रह्मा जी जैसे महामुनि नारद मुनि, सरस्वती शेष नागा, यम, कुबेर, दशों दिशाओं के रक्षक भी जिनकी महिमा का वर्णन नहीं कर सकते, तो सांसारिक कवि ज्ञानी हनुमान जी की महिमा को कैसे कह सकते हैं।
तुम उपकार सुग्रीवहीं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
अर्थ- आपने सुग्रीव को प्रभु राम से मिलवाकर उन पर महान उपकार किया, राम मिलन से ही उन्हें किष्किन्धा का राज्य प्राप्त हुआ।
तुम्हरो मन्त्र, विभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
अर्थ- आपका परामर्श मानकर विभीषण प्रभु राम की शरण में गये, जिसके कारण वे लंका के राजा बने, ये बात सारा संसार जानता है।
जुग सहस्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
अर्थ- आपने बाल्यकाल में हजारों योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को एक मधुर (मीठा) फल जानकर मुंह में रख लिया था।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघ गये अचरज नाहीं॥
अर्थ- श्री राम की वह मुद्रिका जो समस्त कार्याें को पूर्ण कराने वाली तथा सब विघ्न बाधाओें को हरने वाली थी उसे मुंह में रख आपने विशाल सागर पार किया, इसमें अचरज नहीं है।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
अर्थ- संसार में लोगों के जितने भी कठिन कार्य हैं वे आपकी कृपा से सरल हो जाते हैं।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
अर्थ- प्रभु राम के द्वार (बैकुंठ) के आप रखवाले हैं। आपकी आज्ञा के बिना कोई भी उस धाम में प्रवेश नहीं कर सकता।
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥
अर्थ- जो आपकी शरण में आता है वह सब सुखों को प्राप्त करता है और जब आप स्वयं उसके रक्षक हैं तो उसे फिर किस बात का डर है।
आपन तेज सम्हारो आंपैं।
तीनों लोक हांक तें कांपैं॥
अर्थ- आपका तेज अत्यन्त प्रचण्ड है, उसे स्वयं आप ही सम्भाल सकते हैं। आपकी एक हुंकार से ही तीनों लोक कांप उठते हैं।
भूत पिशाच निकट नहीं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥
अर्थ- यदि किसी को भूत-पिशाच दिखायी देते हैं तो हे महावीर जी आप का नाम लेने भर मात्र से वह तुरन्त भाग जाते हैं। आपका नाम राम बाण की भांति है।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
अर्थ- आपके नाम का निरन्तर जाप करने से सब रोग व पीड़ायें व (आदि भौतिक, आदि दैविक तथा आध्यात्मिक) ये तीनों ताप भी दूर हो जाते हैं।
संकट ते हनुमान छुड़ावैं।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
अर्थ- जो व्यक्ति मन, वाणी व शरीर से हनुमान जी का स्मरण व पूजा करते हैं, हनुमान जी उनके सब संकट दूर कर देते हैं।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥
अर्थ- तपस्वी राम सारे संसार के राजा हैं फिर भी हनुमान जी! आपने उनके सारे कठिन कार्य सम्पन्न किये।
और मनोरथ जो कोई लाावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥
अर्थ- जो कोई अपनी सांसारिक इच्छा लेकर आता है, उसे तो आप पूरा करते ही हैं पर साथ ही राम भक्ति का मार्ग दिखाते हैं जिससे मनुष्य जीवन का अमूल्य फल (मोक्ष) प्राप्त करता है।
चारों युग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
अर्थ- आपका प्रभाव चारों युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, तथा कलियुग) में फैला है वह प्रताप जगत को प्रकाशमान करने के लिये प्रसिद्ध है।
साधु सन्त के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
अर्थ- आप सज्जनों, प्रभु भक्तों की रक्षा करने वाले व दुष्टों का नाश करने वाले हैं। प्रभु राम को पुत्र के समान प्रिय हैं।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस वर दीन जानकी माता॥
अर्थ- आप आठों सिद्धियों तथा नव निधियों के स्वामी हैं जो इस प्रकार हैं :-
अणिमा-साधक अदृश्य हो कठिन पदार्थ में प्रवेश कर पाता है।
महिमा-योगी अपने को बहुत बड़ा बनाता है।
गरिमा-साधक स्वयं को जितना चाहे भारी बनाता है।
लघिमा-साधक जितना चाहे हल्का बन सकता हैै।
प्राप्ति-इच्छित पदार्थ की प्राप्ति।
प्रकाम्य-साधक धरती में समा सकता है व आकाश में उड़ सकता है।
ईशित्व-शासन सामथ्र्य।
वशित्व-दूसरों को वश में करना।
और नौ निधियांः पद्य, महापद्य, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुंद, नील, बत्तर्य। मां सीता के वरदान से जिसे चाहे उसे दे सकते हैं।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
अर्थ- आप के पास राम भक्ति रूपी रसायन है, जो किसी को भी सर्वश्रेष्ठ बना सकता है। आप रघुपति दास के रूप में लोगों को राम भक्त बनाते हैं।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अर्थ- आपके लिये किये गये सभी भजन श्री राम तक पहुंचते हैं जिससे जन्म-जन्मान्तर के दुःख दूर हो जाते हैं।
अन्त काल रघुवर पुर जाई।
जहां जनम हरि-भक्त कहाइ॥
अर्थ- आपके भजनों की कृपा से ही प्राणी अन्त समय श्री राम के धाम (मोक्ष) को प्राप्त करते हैं और यदि मृत्युलोक में जन्म लेंगे, तो भक्ति करेंगे व हरि भक्त कहलायेंगे।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥
अर्थ- राम भक्ति में (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) सब एक हैं। हे हनुमान जी! जो भक्त सच्चे मन से आपकी सेवा करते हैं उन्हें सब सुख प्राप्त होते हैं। अन्य किसी देवता की पूजा की आवश्यकता नहीं रहती।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
अर्थ- महावीर जी की उपासना भक्ति से मनुष्य के सारे संकट, कष्ट, दुःख मिट जाते हैं। वह जन्म-मरण (भव) की पीड़ा से मुक्त हो जाता है।
जय जय जय हनुमान गोसांईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नांई॥
अर्थ- हे हनुमान गोस्वामी (जिसने दसों इन्दियों को वश में किया हो) आपकी जय हो, जय हो। गुरू की भांति मुझ पर कृपा करें।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महासुख होई॥
अर्थ- जो व्यक्ति हनुमान चालीसा का शत (निरन्तर) पाठ करता है वह जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो शश्वत आनन्द प्राप्त करता है।
जो यह पढै़ हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
अर्थ- जो व्यक्ति हनुमान चालीसा को पढ़ता है उसकी सब मनोकामनायें सफल होती हैं। इस बात का साक्ष्य स्वयं गौरीश भगवान शंकर देते हैं।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा॥
अर्थ- तुलसीदास तो सदा प्रभु राम के दास हैं। हे हनुमान जी आप भी मेरे हृदय में विराजें।
।। दोहा ।।
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप॥
अर्थ- हे पवन पुत्र, संकटों, दुखों और कष्टों को दूर करने वाले हनुमान जी मंगल एवं परम कल्याण की साक्षात मूर्ति हैं और आप जो देवताओं के भूप (राजा स्वामी) हैं। श्री राम, लक्ष्मण व माता सीता के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास कीजिये।
॥ इति॥
॥”जय श्री राम”॥
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