Sadhu Aur Kumhar : साधू और परोपकारी कुम्हार
Sadhu Aur Kumhar एक समय की बात है किसी शहर में एक कुम्हार रहता था। घर में ही वह तरह-तरह के मिट्टी के बर्तन बनाया करता था। उसका काम अच्छा चल रहा था तथा अपने शहर में उसने अच्छी पहचान बना ली थी यहां तक कि बड़े-बड़े व्यापारी तथा धनी लोग भी उससे कभी पानी के मटके तो कभी अपने बच्चों के लिये मिट्टी के खिलौने ले जाया करते थे। इस तरह उस कुम्हार के दिन अच्छी तरह से बीत रहे थे।
एक समय की बात है कुम्हार ने रोज की तरह मिट्टी के ढेर-सारे कच्चे खिलौने तथा मटके बना रखे थे। वे अभी पूरी तरह से तैयार नहीं थे इसलिए उसने आंगन में धूप में सुखाने के लिये वे सभी बर्तन रख दिये उसने सोचा जब तक बर्तन सूख रहे हैं मैं अपना काम निपटा लूं। ये सोचकर वह किसी काम से शहर से बाहर चला गया। वह अपना काम खत्म करके अपने घर की ओर लौट ही रहा था कि अचानक मौसम खराब हो गया और जोरों की बरसात शुरू हो गई।
अब तो कुम्हार को अपने बर्तनों का ख्याल आया और मारे डर के उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा वह जल्दी-जल्दी अपने घर की ओर भागा, लेकिन जब तक वह अपने घर पर पहुंचा तब तक सारे बर्तन बारिश में भीगने के कारण खराब हो चुके थे। उसका काफी नुकसान हो चुका था और उसके पास इतने पैसे भी नहीं बचे थे कि वह फिर से सारा समान बनाने के लिए मिट्टी खरीद सके।
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उसने अपने दोस्तों से धन मांगा लेकिन सभी ने मना कर दिया। वह निराश होकर अपने घर लौट आया। उस शहर से कुछ मील दूर एक गांव था जिसमें एक बड़े प्रसिद्ध साधू रहा करते थे। उसने सोचा कि उन्हीं साधु के पास चला जाये तथा उनसे इस समस्या के समाधान का हल पूछा जाये Sadhu Aur Kumhar।
ये सोचकर वह उस गांव के लिये निकल पड़ा। अभी वह कुछ दूर चला ही था कि उसे एक बड़ी-सी नदी दिखाई दी। वहां पर एक नाविक अपनी नाव लिये बैठा था। कुम्हार ने उससे नदी पार कराने के लिये कहा और यह भी कहा कि उसके पास धन नहीं है और वह प्रसिद्ध संत के यहां अपनी समस्या का हल ढूंढने के लिये जा रहा है।
यह सुनकर नाविक तैयार हो गया किन्तु उसने एक शर्त रखी। नाविक ने कुम्हार से कहा -‘‘उन साधू को मेरा प्रणाम कहना और पूछना की मेरी आमदनी बहुत कम होती है जिस कारण मैं अपने परिवार का भरण-पोषण नहीं कर पाता इसका क्या कारण है और क्या उपाय करूं जिससे कि मेरी आमदनी अच्छी हो जाये।” Sadhu Aur Kumhar कुम्हार ने उसे विश्वास दिलाया कि वह साधू से इस बारे में अवश्य पूछेगा।
नदी पार करने के कुछ दूर बाद उसे एक घना जंगल दिखाई दिया। उस जंगल के प्रवेश द्वार पर एक ऊंचे पेड़ पर एक जिन्न बैठा था जिसके हाथ में एक जादुई चिराग था। वह कुम्हार को देखकर नीचे उतर आया और उसके इधर आने का कारण पूछा। जिन्न को देखकर पहले तो कुम्हार डर गया किन्तु डरते-डरते उसने सारी बात बता दी। जिन्न ने उसे कहा कि -‘‘यह बहुत घना जंगल है जिसमें तरह-तरह के खतरनाक जीव-जन्तु रहते हैं। तुम इसे पैदल पार नहीं कर पाओगे किन्तु यदि तुम चाहोगे तो मैं उड़कर तुम्हें इस जंगल के पार उतार सकता हूं लेकिन मेरी एक शर्त है।‘‘
कुम्हार ने जिन्न से पूछा -‘‘ तुम्हारी क्या शर्त है ?” जिन्न बोला कि तुम साधू महाराज से पूछना कि मुझे मुक्ति कैसे मिलेगी ? यह कहकर जिन्न ने कुम्हार को अपने कंधे पर बैठा लिया तथा जंगल को पार करा दिया। कुम्हार धन्यवाद देता हुआ वहां से चल दिया।
जब वह साधु के गांव के पास पहुंचा तो रात हो चुकी थी। अंधेरे में कुछ दिखाई न देता था जिस कारण उसे आगे जाने में डर भी लग रहा था। तभी उसे एक बड़ा-सा मकान दिखाई दिया मकान किसी धनी व्यक्ति का था। कुम्हार ने दरवाजा खटखटाया तो एक बूढ़ी औरत ने दरवाजा खोला।
Sadhu Aur Kumhar कुम्हार उस वृद्धा से बोला- ‘‘ मां जी मुझे साधू महाराज के दर्शन हेतु गांव में जाना है किन्तु अंधेरा हो गया है। यदि आपकी आज्ञा हो तो क्या मैं आज रात आपके घर पर रुक सकता हूं।” वृद्धा एक भली औरत थी उसने कुम्हार को वहां रुकने की आज्ञा दे दी। तभी कुम्हार की नजर उस वृद्धा की लड़की पर पड़ी जो कि बीमार थी।
कुम्हार ने उसके बारे में पूछा तो वृद्धा बोली – ‘‘ यह मेरी इकलौती बेटी है यह सदा ही बीमार रहती है काफी इलाज कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कुछ देर रुककर वह वृद्धा बोली – ‘‘ तुम तो प्रसिद्ध साधू महाराज के पास जा ही रहे हो यदि हो सके तो मेरी बेटी कैसे ठीक होगी इसका उपाय पूछ लेना मैं वृद्ध हो चुकी हूं इसलिए वहां न जा पाउंगी। कुम्हार बोला-‘‘ आप चिंता न कीजिये मां जी! मैं अवश्य ही आपकी बेटी के बारे में पूछूंगा।” कहकर वह सो गया।
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अगले दिन कुम्हार ने रात में ठहराने के लिये वृद्धा को धन्यवाद दिया और आगे की ओर निकल पड़ा। अब वह उस स्थान पर जा पहुंचा जहां पर उन साधू महाराज का आश्रम था। वह आश्रम एकांत स्थान पर था चारों ओर दूर तक हरियाली-ही-हरियाली छाई हुई थी। हरे-भरे पेड़ों से चारों ओर से घिरा वह आश्रम मन को बड़ी शांति प्रदान करने वाला था।
इतने में वे साधू के पास पहुंचा। उसने अपने तथा अपने साथ-साथ जिन लोगों से वह रास्ते में मिला उनके बारे में बताया। साधु बोले – ‘‘ मैं तुम्हारे किन्हीं तीन प्रश्नों का ही उत्तर दे सकता हूं।” यह सुनकर कुम्हार को समझ न आया कि वह कौन से तीन प्रश्न पूछे।
उसने सोचा मैं तो कुम्हार हूं अकेला रहता हूं आज नहीं तो कल जैसे-तैसे धन की व्यवस्था करके फिर से काम शुरू कर लूंगा। किन्तु नाविक तो अपने परिवार के साथ रहता है जिसकी आमदनी इतनी नहीं होती कि वह अपने परिवार का पालन-पोषण कर सके और वह जिन्न, जो कि पता नहीं कितने वर्षों से मुक्त होना चाहता है तथा साथ ही वह वृद्धा जिसकी पुत्री बीमार है। वृद्धा के बाद उसकी बेटी की कौन संभाल करेगा।
कुम्हार ने निश्चय किया कि वह अपने बारे में न पूछकर उन तीनों की समस्या के बारे में पूछेगा। साधू ने उन तीनों प्रश्नों के उत्तर उसे दे दिये तथा उसकी दूसरों के प्रति भावना देखकर वह बहुत प्रसन्न हुये तथा उसे आशीर्वाद भी प्रदान किया। Sadhu Aur Kumhar साधू को कुम्हार ने प्रणाम किया और चला गया।
सबसे पहले वह नाविक से मिला तथा उसे साधू के उत्तर के बारे में बताया कि -‘‘कि तुम रोजाना नदी से मछलियां पकडकर मारकर परिवार के साथ खाते हो, उसे छोड़ना होगा। नाविक ने ऐसा ही किया उसने मछलियां को मारना बंद कर दिया अबसे वह केवल यात्रियों को नदी को पार कराने का कार्य करने लगा और देखते-ही-देखते उसकी आमदनी में बढ़ोत्तरी होती गई। इससे प्रसन्न होकर नाविक ने कुम्हार को बहुत-सा धन प्रदान किया।
अब वह कुम्हार उस जिन्न के पास पहुंचा। कुम्हार उससे बोला- तुम जब तक अपने हाथ में यह चिराग रखोगे तब तक मुक्त नहीं हो सकते। मुक्त होने के लिए तुम्हें चिराग छोड़ना पडे़गा। जिन्न ने ऐसा ही किया और तभी वहां पर एक रोशनी निकली और जिन्न तथा चिराग दोनों ही उस रोशनी में गायब हो गये और मुक्त हो गये Sadhu Aur Kumhar।
अंत में वह उसी वृद्धा के घर आया और बोला -‘‘ आपकी बेटी तभी ठीक हो सकती है जब उसकी शादी किसी परोपकारी व्यक्ति से कर दी जाये। वृद्धा ने सोचा कि ऐसा परोपकारी वर उसे कहां मिलेगा यह सोचकर उसी कुम्हार से अपनी बेटी का विवाह कर दिया। कुछ दिन के बाद वृद्धा की बेटी बिल्कुल ठीक हो गई तथा कुम्हार और लड़की दोनों सुखपूर्वक रहने लगे। इस प्रकार उन साधू के आशीर्वाद तथा कुम्हार की भलाई से सभी का जीवन खुशहाल हो गया।
Sadhu Aur Kumhar शिक्षा :- विपरीत परिस्थितियों में भी हमें कभी धैर्य नहीं खोना चाहिये।
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