Panchamrit :जानिये पंचामृत से कैसे करें शिवजी का रुद्राभिषेक ?
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नमस्कार दोस्तों ! पोस्ट Panchamrit में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, मनुष्य की रचना पांच तत्वों से मिलकर हुई है जो इस प्रकार हैं – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश। इनके अलावा पांच ज्ञानेन्द्रियां तथा पांच कर्मेन्द्रियां भी उसमें समावेशित हैं। इन सब में सर्वाधिक शक्तिशाली मन को माना गया है जिसकी गति अत्यधिक तीव्र होती है मन की इसी चंचलता के कारण मात्र मनुष्यों को ही नहीं अपितु देवताओं के साथ-साथ दैत्यों को भी दुःख झेलने पडे़ थे।
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इसी क्रम में मन के पांच विकार बताये गये हैं – काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार इन पांचों के कारण ही मनुष्य सदा ही दु:ख पाता है। प्राचीन काल में भी ऋषि विश्वामित्र, ऋ़षि दुर्वासा तथा इन्द्रादि देवताओं को भी इन विकारों के हाथों पराजित होना पड़ा था।
कोई भी अनुष्ठान हो अथवा पूजा-अर्चना हो वह केवल तभी सफल होती है जब मन के इन विकारों से व्यक्ति मुक्त हो जाए और निर्मल मन से ईश्वर की आराधना करे। मन को निर्मल करने के लिए प्रत्येक पूजा में पंचामृत का उपयोग करने की सलाह दी गई है। शिवलिंग और अन्य देव मूर्तियों को स्नान कराने से लेकर प्रसाद के रूप में पंचामृत ग्रहण करने की परंपरा है।
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा का संबंध मानव मन तथा सफेद वस्तुओं से है। चंद्रमा को भगवान शिव ने अपने मस्तक पर स्थान दिया है क्योंकि वे उन्हें विशेष प्रिय हैं। जहां चंद्रमा का स्वभाव चंचल है तो वहीं शिवजी का स्वभाव गम्भीर। यदि मनुष्य में चंचलता का तत्व प्रधान है तो उसे विशेषकर सफेद वस्तुओं द्वारा सफेद शिवलिंग की पूजा पंचामृत के माध्यम से करनी चाहिए। पंचामृत में दूध, दही शक्कर आदि सफेद वस्तुएं चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करती है।
जब चंद्र प्रधान दूध, दही इत्यादि से भगवान शिव को स्नान कराया जाता है तो व्यक्ति के मन की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है तथा साथ-ही-साथ उसके मन का चंचल स्वभाव भी समाप्त हो जाता है। इसलिए सावन के महीने में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है। मन निर्मल हो जाने पर भगवान शिव की कृपा भक्तों पर होती है यदि कोई भक्त इस पवित्र माह में सच्चे मन से शिव की उपासना करता है तो उसे उस भक्ति का लाभ अवश्य ही मिलता है।
Panchamrit : क्यों अनिवार्य है पंचतत्वों का संतुलन ?
सृष्टि की रचना करते समय ईश्वर ने अपने संपूर्ण अंश में से पांच तत्वों को मिलाकर मानव शरीर की रचना की है, इसीलिए सुख-शांति से जीवन निर्वाह करने के लिए मनुष्य को पंचतत्व के समन्वय की आवश्यकता पड़ती है। पंचतत्वों को अपने अनुकूल बनाने के लिए प्राचीनकाल से मनुष्य वास्तुशास्त्र, आयुर्वेद विज्ञान, आध्यात्मिक विधि-विधान, पूजा-पाठ और अनुष्ठान का सहारा लेता आया है।
गृहस्थ जीवन को सुखमय बनाने के लिए सावन के महीने में शिव का रुद्राभिषेक सरल उपाय है। इस माह में पति-पत्नी किसी विद्वान आचार्य जो वेदों तथा शास्त्रों का श्रेष्ठ ज्ञान रखते हों तथा जिनका मन भगवान आशुतोष के प्रति अनुराग से भरा हो उनकी उपस्थिति में भगवान शिव का रुद्राभिषेक कर महादेवजी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। प्राचीनकाल में ऋषि-महर्षियों को ज्ञात था कि पंचतत्व के समन्वय और पंचामृत के सेवन से मानव की रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।
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शरीर में किसी कारणवश एक भी तत्व कमजोर पड़ जाए तो शरीर अस्वस्थ हो जाता है। अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल और आकाश में असंतुलन से प्राकृतिक आपदाएं आती हैं, मानव शरीर में मौजूद पंचतत्वों का असंतुलन होने पर रोगों का सृजन होता है। सावन में जब जनमानस शिव को प्रकृति से उत्पन्न वस्तुओं का अर्पण कर पूजा करता है, तो पंचतत्व और वायुमण्डल के संतुलन के साथ-साथ सभी को जीवन के लिए लाभदायक ऊर्जा प्राप्त होती है, जो विश्व कल्याण के लिए अत्यंत आवश्यक है।
अतः प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह भगवान शिव को प्रिय इस परम पवित्र मास में शिवजी की विशेष आराधना तथा पूजा-अर्चना करे साथ ही रुद्राभिषेक का अनुष्ठान कर अपने तथा अपने परिवार तथा आने वाली पीढ़ियों के जीवन की सफल तथा मंगल कामना हेतु शिवजी को प्रसन्न करे। देवों के देव महादेव शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले देव हैं यही कारण है कि इनका एक नाम आशुतोष भी है। विधि-विधान से पूजा होकर संतुष्ट होने पर यह अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण कर देते हैं।
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पंचामृत बनाने की आवश्यक सामग्री panchamrit ingredients
पंचामृत बनाने में मुख्य रूप से इन 5 वस्तुओं की आवश्यक्ता होती है-
- गाय का कच्चा दूध
- गाय का घी
- दही
- शहद
- शक्कर अथवा मिश्री
इसी के साथ ही कई स्थानों पर पंचामृत बनाने के लिये इन सहायक वस्तुओं का भी उपयोग किया जाता है- गंगाजल, तुलसी के पत्ते, पंच मेवा – मखाने, काजू, छुआरे, गिरी तथा चिरौंजी, चाँदी की कटोरी ।
पंचामृत बनाने की विधि : panchamrit recipe
पंचामृत बनाने की विधि बहुत ही सधारण है । सबसे पहले एक साफ धुले हुये बर्तन को लेकर उसमें गाय का कच्चा दूध तथा दही को मिला लेते हैं। अब इसमें शहद व घी को भी मिला लेते हैं इसके बाद इस मिश्रण में पंच मेवा अर्थात मखाने, काजू, छुआरे, गिरी तथा चिरौंजी को मिलाना होता है। अब अंत में इस मिश्रण को गंगाजल और तुलसी के पत्तों के साथ मिला लेते हैं।
पंचामृत से रुद्राभिषेक करने की विधि panchamrit rudrabhishek
जैसे कि अब हम सब जान गये हैं कि दूध, दही, मधु, घुत (घी) और शक्कर, इन पांचों को मिलाकर पंचामृत) का निर्माण किया जाता है। सर्वप्रथम शिवलिंग पर जल अर्पण करें तथा उसके बाद एक-एक करके दूध, दही, घी, शहद और शक्कर चढ़ाएं। प्रत्येक वस्तु अर्पित करने के बाद शिवलिंग को जल से स्नान अवश्य करायें उसके बाद दूध, दही, घी, शहद और शक्कर पांचों वस्तुओं को मिलाकर एक साथ शिवार्पण करें। पूजा के दौरान पंचाक्षर अथवा षडाक्षर मंत्र का उच्चारण करते रहें।
पंचामृत के फायदे
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धर्मशास्त्रों के अनुसार श्रावण मास में पंचामृत से शिव को स्नान कराने से मनुष्य की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
1. धन-सम्पदा के लिए पंचामृत से स्नान
2. संतान प्राप्ति के लिए गाय के दुग्ध से अभिषेक,
3. भवन-वाहन और ऐश्वर्य के लिए दही से,
4. धन प्राप्ति के साथ-साथ कष्ट निवारण के लिए शहद से,
5. रोगों शमन, कल्याण और मोक्ष प्राप्ति हेतु भी घी से
6. बौद्धिक क्षमता बढ़ाने तथा सर्वकल्याण के लिए शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करना
विशेष फलदायक माना जाता है।
पंचामृत से भगवान के स्नान का मंत्र
पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं।
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ॥
॥ इति ॥
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