Navagraha Stotram: नवग्रह स्तोत्र (हिंदी अर्थ सहित)
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नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Navagraha Stotram में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, जब कोई प्राणी पृथ्वी पर जन्म लेता है तब जन्मस्थान, तिथि, समय तथा ग्रह-नक्षत्र आदि उसके जीवन की दिशा तथा दशा निर्धारित करते हैं जन्म कुण्डली भी उसके जन्म के आधार पर ही तैयार की जाती है। ब्रह्मांड में स्थित नवग्रहों का जातक पर जीवन भर निरंतर प्रभाव पड़ता।
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जन्म समय के ग्रहों की अवस्था के अनुसार प्रत्येक जातक को सुख या दु:ख मिलता है। यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में अशुभ ग्रह की स्थिति हो, अशुभ ग्रहों की दशा-अंतर्दशा चल रही हो तो इन नवग्रहों की शांति के लिये हमारे शास्त्रों में कई प्रकार के पूजन विधान दिये गये हैं जिनसे हम अपनी ग्रह-दशा के उपाय कर सकते हैं।
आज की पोस्ट में हम नवग्रह स्तोत्र का हिन्दी सहित अर्थ जानेंगे। तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं –
Navagraha Stotram : अथ श्री नवग्रह स्तोत्र प्रारंभ
Navagraha Stotram
॥ ऊं श्री गणेशाय नमः॥
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महदद्युतिम् ।
तमोरिंसर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरम् ॥ १ ॥
अर्थ — जपा के फूल की तरह जिनकी कान्ति है, कश्यप से जो उत्पन्न हुए हैं, अन्धकार जिनका शत्रु है, जो सब पापों को नष्ट कर देते हैं, उन सूर्य भगवान् को मैं प्रणाम करता हूँ।
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम् ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम् ॥ २ ॥
अर्थ — दही, शंख अथवा हिम के समान जिनकी दीप्ति है, जिनकी उत्पत्ति क्षीर-समुद्र से है, जो शिवजी के मुकुट पर अलंकार की तरह विराजमान रहते हैं, मैं उन चन्द्रदेव को प्रणाम करता हूँ।
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणाम्यहम् ॥ ३ ॥
अर्थ — पृथ्वी के उदर से जिनकी उत्पत्ति हुई है, विद्युत्पुंज के समान जिनकी प्रभा है, जो हाथों में शक्ति धारण किये रहते हैं, उन मंगल देव को मैं प्रणाम करता हूँ।
प्रियंगु कलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम् ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् ॥ ४ ॥
अर्थ — प्रियंगु की कली की तरह जिनका श्याम वर्ण है, जिनके रूप की कोई उपमा नहीं है, उन सौम्य और गुणों से युक्त बुध को मैं प्रणाम करता हूँ।
देवानांच ऋषीनांच गुरुं कांचन सन्निभम् ।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ॥ ५ ॥
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अर्थ— जो देवताओं और ऋषियों के गुरु हैं, कंचन के समान जिनकी प्रभा है, जो बुद्धि के अखण्ड भण्डार और तीनों लोकों के प्रभु हैं, उन बृहस्पति को मैं प्रणाम करता हूँ।
हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् ।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ॥ ६ ॥
अर्थ — तुषार, कुन्द अथवा मृणाल के समान जिनकी आभा है, जो दैत्यों के परम गुरु हैं, उन सब शास्त्रों के अद्वितीय वक्ता शुक्राचार्यजी को मैं प्रणाम करता हूँ।
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ॥ ७ ॥
अर्थ — नीले अंजन (स्याही) के समान जिनकी दीप्ति है, जो सूर्य भगवान् के पुत्र तथा यमराज के बड़े भ्राता भी हैं , सूर्य की छाया से जिनकी उत्पत्ति हुई है, उन शनैश्चर देवता को मैं प्रणाम करता हूँ।
अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम् ।
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ॥ ८ ॥
अर्थ — जिनका केवल आधा शरीर है, जिनमें महान् पराक्रम है, जो चन्द्र और सूर्य को भी परास्त कर देते हैं, सिंहिका के गर्भ से जिनकी उत्पत्ति हुई है, उन राहु देवता को मैं प्रणाम करता हूँ।
पलाश पुष्प संकाशं तारकाग्रह मस्तकम् ।
रौद्रंरौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ॥ ९ ॥
अर्थ — पलाश के फूल की तरह जिनकी लाल दीप्ति है, जो समस्त तारकाओं में श्रेष्ठ हैं, जो स्वयं रौद्र रूप और रौद्रात्मक हैं, ऐसे घोर रूपधारी केतु को मैं प्रणाम करता हूँ।
इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम् यः पठेत् सुसमाहितः ।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शांतिर्भविष्यति ॥ १० ॥
अर्थ — श्रीव्यास जी के मुख से निकले हुए इस स्तोत्र का जो दिन या रात्रि के समय पाठ करता है, उसकी सारी विघ्न—बाधायें शान्त हो जाती हैं।
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नरनारी नृपाणांच भवेत् दुःस्वप्ननाशनम् ।
ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम् ॥ ११ ॥
अर्थ — संसार के सभी स्त्री पुरुष और राजाओं के भी दुःस्वप्न का नाश होता है साथ ही ऐश्वर्य की प्राप्ति के साथ समस्त आरोग्य प्राप्त हो जाते हैं।
ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः ।
ता सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासोब्रुते न संशयः ॥ १२ ॥
अर्थ — व्यास जी कह्ते हैं इस स्त्रोत के प्र्भाव से सभी प्र्कार के ग्रह, नक्षत्र, चोर तथा अग्नि से जायमान पीड़ायें शान्त हो जाती हैं इसमें संशय नहीं है।
किसने की स्तोत्र की रचना ?
इस स्तोत्र को व्यास ऋषि ने लिखा है इसमें नौ ग्रहों के नौ मंत्र शामिल हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी परेशानियां, कठिनाइयां हमारे जीवन से दूर हो जाती हैं तथा साथ ही हमारे जीवन से सभी प्रकार के दुःख भी दूर हो जाते हैं। हम धनी और समृद्ध होते हैं और अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है इसीलिये हमें प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ श्रद्धा, भक्ति और एकाग्रता के साथ करना चाहिए।
Navagraha Stotram: नवग्रह तथा उनका परिचय
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आईये, नवग्रहों को संक्षेप में जानें –
सूर्य — यह अग्नि तत्त्व है। सब ग्रहों का स्वामी होने से यह प्रशासक है, जो दिशाओं में भ्रमण के कारण वातावरण में परिवर्तन करता है। यह वन और औषधि का कारक है।
चंद्रमा — यह जल सम्बंधि तत्त्व है और खाद्य पदार्थ, फसलों, औषधि और वनस्पति का कारक है। यह शांत ग्रह है।
मंगल— यह अग्नि तत्त्व है। यह सेनापति, बल, शास्त्रास्त्र से संबंध रखता है। रक्त का कारक होने से यह दुर्घटनाएं भी देता है। युद्ध और यातायात भी यही देता है।
बुध— युवराज होने से क्षेत्र के बच्चों, खेल, व्यापार, वायु प्रदूषण, वस्तु विनिमय का प्रतिनिधित्व करता है।
बृहस्पति— यह आकाश तत्त्व है। शिक्षक, समुदाय, पुरोहित वर्ग, राजस्व, बैंक आदि का कारक है।
शुक्र— यह जल तत्त्व है तथा महिलाओं का प्रतिनिधित्व करता है। नैतिकता, स्नेह व सौंदर्य आदि देता है।
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शनि— यह वायु तत्त्व है तथा मजदूर वर्ग और निम्न जाति का प्रतिनिधित्व करता है। खनिज और कृषि उत्पादन एवं नगर निगम आदि संस्थाओं का कारक है। कृषि जन्य संक्रामक रोग भी इसी के कारण होते है, उद्योगों से कमाने वाले उद्योगपति और गृह त्याग तथा कष्ट सहन के कारण संन्यासी और विरक्त भी इसी ग्रह से बनते हैं।
राहु— छाया ग्रह होने से यह पाप ग्रह माना जाता है। अत: यह पृथकतावादी ग्रह है। यह एकदम हानि, लाभ, दुर्घटना आदि का कारक बनता है। पशु हानि में इसका योग रहता है।
केतु— यह राहु का ही प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन राहु से हमेशा सप्तम रहने के कारण उसका विपरीत फल भी देता है। यह पताका है, जिसका तात्पर्य है फल को अंतिम छोर तक पहुंचाना।
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॥ इति ॥
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