Mahishasur Mardini : महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र (हिंदी अर्थ सहित)

Mahishasur Mardini : महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र (हिंदी अर्थ सहित)|

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट mahishasur mardini में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र  देवी दुर्गा के ही भिन्न—भिन्न स्वरूपों से जुड़ा हुआ बहुत ही शक्तिशाली स्तोत्र है।  इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्तिक जीवन में कभी कोई संकट नहीं आता तथा उस पर जगज्जननी मां भगवती की असीम कृपा सदैव बनी रहती है। तो आइये मां दुर्गा के इस अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र को हिन्दी के अर्थ के साथ जानते हैं :-

Mahishasur Mardini : महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र (हिंदी अर्थ सहित)

Mahishasur Mardini stotram

mahishasura mardini stotram

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते।
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१॥

अर्थहे पर्वतों के राजा हिमालय की कन्या, विश्व को आनन्दित करनेवाली, नन्दिगण से नमस्कार की जानेवाली, गिरिश्रेष्ठ विन्ध्याचल के शिखर पर निवास करनेवाली, भगवान विष्णु को प्रसन्न रखनेवाली, इन्द्र से नमस्कृत होनेवाली, भगवान शिव की भार्या (पत्नी) के रूप में प्रतिष्ठित, विशाल कुटुम्बवाली और ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली हे  महिषासुर का मर्दन करने वाली भगवती ! अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री आपकी जय हो, जय हो, जय हो।

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते।
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि  कल्मषमोषिणि घोषरते।।
दनुजनिरोषिणि दुर्मदशोषिणि दुर्मुनिरोषिणि सिन्धुसुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥२॥

अर्थ देवताओं को  वर देने  वाली, दुर्धर तथा दुर्मुख नामक दैत्यों का विनाश करनेवाली, सर्वदा हर्षित /प्रसन्न रहनेवाली, तीनों लोकों का पालन-पोषण करनेवाली, अपने पति भगवान नीलकंठ को संतुष्ट रखनेवाली, पाप को दूर करनेवाली, घोर गर्जन करनेवाली, दैत्यों पर भीषण कोप करनेवाली, मदान्धों के मद का हरण कर लेनेवाली, सदाचार से रहित मुनिजनों पर क्रोध करनेवाली और समुद्र की कन्या महालक्ष्मी के रूप में प्रतिष्ठित हे महिषासुर मर्दिनी ! आपकी जय हो, जय हो, जय हो।

अयि जगदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि तोषिणि हासरते।
शिखरिशिरोमणितुङ्गहिमालयशृङ्गनिजालयमध्यगते।।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि महिषविदारिणि रासरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥३॥

अर्थ हे जगत की माता, कदम्ब वृक्ष के वन में प्रेमपूर्वक निवास करनेवाली, सदा संतुष्ट रहनेवाली, हास-परिहास में सदा रत रहनेवाली, पर्वतों में श्रेष्ठ हिमालय के शिखर पर अपने भवन में विराजमान रहनेवाली, मधु (शहद) से भी अधिक मधुर स्वभाववाली, मधु-कैटभ का संहार करनेवाली, महिष को विदीर्ण करने वाली और सदा युद्ध  में लिप्त रहने वाली हे पर्वत की पुत्री ! आपकी जय हो, जय हो, जय हो।

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते।
रिपु गजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते।।

निजभुज दण्डनिपातित खण्ड विपातित मुण्ड भटाधिपते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥४॥

अर्थ शत्रुओं के हाथियों की सूंड काटने वाली और काटकर सैकड़ों टुकड़े करने वाली, जिनका सिंह शत्रुओं के हाथियों के सर के टुकड़े कर देता है ,सेनापति चण्ड-मुण्ड नामक दैत्यों को अपने भुजदण्ड से मार-मार कर विदीर्ण करने वाली, हे पर्वत की पुत्री ! आपकी जय हो, जय हो, जय हो।
mahishasur mardini

Mahishasur Mardini stotram

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर  शक्तिभृते।
चतुरविचारधुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते।।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदूत  कृतान्तमते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥५॥

अर्थ रणभूमि में मदोन्मत्त शत्रुओं के वध से बढ़ी हुई अदम्य तथा पूर्ण शक्ति धारण करनेवाली, चातुर्यपूर्ण विचारवाले लोगों में श्रेष्ठ और गम्भीर कल्पना वाले प्रमथाधिपति भगवान शंकर को दूत बनानेवाली, दूषित कामनाओं तथा बुरे  विचारों वाले दुर्बुद्धि दानवों के दूतों से न जानी जा सकने वाली, हे पर्वत की पुत्री ! आपकी जय हो, जय हो, जय हो।

अयि शरणागत वैरिवधूवर  वीरवराभय दायिकरे।
त्रिभुवनमस्तक शूलविरोधि शिरोधिकृतामल शूलकरे।।
दुमिदुमितामरदुन्दुभिनादमुहुर्मुखरीकृतदिङ्निकरे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥६॥

अर्थ शरणागत शत्रुओं की स्त्रियों को अभय प्रदान करनेवाली, तीनों लोकों को पीड़ित करनेवाले दैत्य शत्रुओं के मस्तक पर प्रहार करने योग्य त्रिशूल हाथ में धारण करनेवाली तथा देवताओं की दुन्दुभि से निकलने वाली ‘दुम्-दुम्’ ध्वनि से समस्त दिशाओं को बार-बार गुंजित करनेवाली, हे पर्वत की पुत्री महिषासुर मर्दिनी ! आपकी जय हो, जय हो।

अयि निजहुंकृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते।
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते।।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥७॥

अर्थ अपनी हुंकार मात्र से धूम्रलोचन तथा धूम्र आदि सैकड़ों असुरों को भस्म कर  देने  वाली, युद्धभूमि में कुपित रक्तबीज के रक्त से उत्पन्न हुए अन्य रक्तबीज समूहों का रक्त पीने वाली और शुम्भ-निशुम्भ नामक दैत्यों  की बली से तृप्त किये गये मंगलकारी शिव के भूत-पिशाचों के प्रति अनुराग रखने वाली,हे पर्वत की पुत्री ! आपकी जय हो, जय हो।

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके।
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके।।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥८॥

अर्थ युद्ध भूमि में जिनके हाथों के कंगन धनुष के साथ चमकते हैं,जिनके सोने के तीर शत्रुओं को विदीर्ण करके लाल हो जाते हैं और उनकी चीख निकालते हैं, चारों प्रकार की सेनाओं [हाथी, घोडा, पैदल और रथ] का संहार करने वाली अनेक प्रकार की ध्वनि करने वाले बटुकों को उत्पन्न करने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते।
कृत कुकुथा कुकुथोदिग डदाडिकतालकुतूहलगानरते।।
धुधुकुट धुक्कुट धिन्धिमित ध्वनि धी रमृदङ्ग निनादरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥९॥

अर्थ देवांगनाओं के तत-था-थेयि-थेयि आदि शब्दों से युक्त भावमय नृत्य में मग्न रहनेवाली, कुकुथा आदि विभिन्न प्रकार की मात्राओं वाले तालों से युक्त आश्चर्यमय गीतों को सुनने में लीन रहनेवाली और मृदंग की धुधुकुट-धूधुट आदि गम्भीर ध्वनि को सुनने में तत्पर रहनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपको नमस्कार है। mahishasur mardini

Mahishasur Mardini stotram

जय जय जाप्य जयेजय शब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते।
झणझणझिंझिम झिंकृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते।।
नटित नटार्ध नटीनट नायक नाटितनाट्य सुगानरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१०॥

Also ReadSampoorna Durga Saptashati Paath दुर्गा सप्तशती

mahishasura mardini stotram

अर्थ हे जपनीय मन्त्र की विजयशक्ति स्वरूपिणि ! आपकी बार-बार जय हो। जय-जयकार शब्दसहित स्तुति करने में तत्पर समस्त संसार के लोगों से नमस्कृत होनेवाली, अपने नूपुर के झण-झण, झिंझिम शब्दों से भूतनाथ भगवान शंकर को मोहित करनेवाली और नटी-नटों के नायक प्रसिद्ध नट अर्धनारीश्वर शंकर के नृत्य से सुशोभित नाट्य देखने में तल्लीन रहनेवाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अयि सुमनःसुमनःसुमनःसुमनःसुमनोरमकान्तियुते।
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रभृते।।
सुनयनविभ्रमरभ्रमरभ्रमरभ्रमरभ्रमराभिदृते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥११॥

अर्थ आकर्षक कान्ति के साथ अति सुन्दर मन से युक्त और रात्रि के आश्रय अर्थात चंद्र देव की आभा को अपने चेहरे की सुन्दरता से फीका करने वाली, काले भंवरों के सामान सुन्दर नेत्रों वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लिरते।
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक  झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते।।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारूण तल्लजपल्लव सल्ललिते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१२॥

अर्थ महायोद्धाओं से युद्ध में चमेली के पुष्पों की भाँति कोमल स्त्रियों के साथ रहने वाली तथा चमेली की लताओं की भाँति कोमल भील स्त्रियों से जो झींगुरों के झुण्ड की भाँती घिरी हुई हैं, चेहरे पर उल्लास (खुशी) से उत्पन्न, उषाकाल के सूर्य और खिले हए लाल फूल के समान मुस्कान वाली, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमत्तङ्गजराजगते।
त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते।।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१३॥

अर्थ सुन्दर दंतपंक्ति वाली स्त्रियों के उत्कण्ठापूर्ण मन को मुग्ध कर देनेवाले कामदेव को जीवन प्रदान करनेवाली, निरन्तर मदोन्मत्त गजराज के सदृश मन्थर गतिवाली और तीनों लोकों के आभूषण स्वरुप चन्द्रमा के समान कान्तियुक्त सागर कन्या के रूप में प्रतिष्ठित हे भगवान शिव की प्रिया ! पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते।
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले।।
अलिकुलसकुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्वकुलालिकुले।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१४।।

अर्थ जिनका कमल दल (पखुड़ी) के समान कोमल, स्वच्छ और कांति (चमक) से युक्त मस्तक है,हंसों के समान जिनकी चाल है,जिनसे सभी कलाओं का उद्भव हुआ है, जिनके बालों में भंवरों से घिरे कुमुदनी के फूल और बकुल पुष्प सुशोभित हैं उन महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री की जय हो, जय हो, जय हो।
mahishasur mardini

Mahishasur Mardini stotram

करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते।
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते।।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१५।।

अर्थ जिनके हाथों की मुरली से बहने वाली ध्वनि से कोयल की आवाज भी लज्जित हो जाती है, जो खिले हुए फूलों से रंगीन पर्वतों से विचरती हुयी, पुलिंद जनजाति की स्त्रियों के साथ मनोहर गीत जाती हैं, जो सद्गुणों से सम्पान शबरी जाति की स्त्रियों के साथ खेलती हैं उन महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री की जय हो, जय हो, जय हो।

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे।
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे।।
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१६।।

अर्थ जिनकी चमक से चन्द्रमा की रौशनी फीकी पड़ जाती है ऐसे सुन्दर रेशम के वस्त्रों से जिनकी कमर सुशोभित है,देवताओं और असुरों के सर झुकने पर उनके मुकुट की मणियों से जिनके पैरों के नाखून चंद्रमा की भाति चमकते—दमकते हैं और जैसे सोने के पर्वतों पर विजय पाकर कोई हाथी मदोन्मत होता है वैसे ही देवी के वक्ष स्थल कलश की भाँति प्रतीत होते हैं ऐसी हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

विजितसहसकरेक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते।
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते।।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१७।।

अर्थ हजारों हस्त नक्षत्रों को जीतनेवाले और सहस्र किरणोंवाले भगवान सूर्य की एकमात्र नमस्करणीय, देवताओं के उद्धार हेतु युद्ध करनेवाले, तारकासुर से संग्राम करनेवाले तथा संसार सागर से पार करनेवाले शिवजी के पुत्र कार्तिकेय से प्रणाम की जानेवाली और राजा सुरथ तथा समाधि नामक वैश्य की सविकल्प समाधि के समान समाधियों में सम्यक जपे जानेवाले मन्त्रों में प्रेम रखनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे।
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्।।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१८।।

अर्थ हे करुणामयी कल्याणमयी शिवे ! हे कमलवासिनी कमले ! जो मनुष्य प्रतिदिन आपके चरणकमल की उपासना करता है, उसे लक्ष्मी का आश्रय क्यों नहीं प्राप्त होगा। हे शिवे ! आपका चरण ही परमपद है, ऐसी भावना रखनेवाले मुझ भक्त को क्या-क्या सुलभ नहीं हो जायेगा अर्थात सब कुछ प्राप्त हो जायेगा।  शिव की पत्नी आपको हमारा  बारम्बार कोटि—कोटि नमस्कार है। 

कनकलसत्कलसिन्धुजलेरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्।
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम्।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१९।।

अर्थ स्वर्ण के समान चमकते घड़ों के जल से जो आपके प्रांगण की रंगभूमि को प्रक्षालित कर उसे स्वच्छ बनाता है, वह इन्द्राणी (शची) के समान विशाल वक्षस्थलों वाली सुन्दरियों का सान्निध्य सुख अवश्य ही प्राप्त करता है। हे सरस्वति ! मैं आपके चरणों को ही अपनी शरणस्थली बनाऊँ, मुझे कल्याणकारक मार्ग प्रदान करो। हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
mahishasur mardini

Mahishasur Mardini stotram

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननुकूलयते।
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखीसु मुखीभिरसौ विमुखीक्रियते।
ममतु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुतक्रियते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।२०।।

अर्थ स्वच्छ चन्द्रमा के सदृश सुशोभित होनेवाले आपके मुखचन्द्र को निर्मल करके जो आपको प्रसन्न कर लेता है, क्या उसे देवराज इन्द्र की नगरी में रहनेवाली चन्द्रमुखी सुन्दरियाँ सुख से वंचित रख सकती हैं। भगवान शिव के सम्मान को अपना सर्वस्व समझनेवाली हे भगवति ! मेरा तो यह विश्वास है कि आपकी कृपा से क्या-क्या सिद्ध नहीं हो जाता। हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

अयि मयि दीन दयालु-तया कृपयेव त्वया भवितव्यमुमे।
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते।।
यदुचितमत्र भवत्पुररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।२१।।

अर्थ हे उमे ! आप सदा दीन-दुःखियों पर दया का भाव रखती हैं, अतः आप मुझ पर कृपालु बनी रहें। हे महालक्ष्मी ! जैसे आप सारे संसार की माता हैं, वैसे ही मैं आपको अपनी भी माता समझता हूँ। हे दीनों पर दया करने वाली उमा। मुझ पर भी दया कर ही दो, हे जगत जननी! जैसे तुम दया की वर्ष करती हो वैसे ही तीरों की वर्ष भी करती हो,इसलिए इस समय जैसा तुम्हें उचित लगे वैसा करो मेरे पाप और ताप दूर करो हे शिवे ! यदि आपको उचित प्रतीत होता हो तो मुझे अपने लोक में जाने की योग्यता प्रदान करें। हे देवि ! मुझ पर दया करें। हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

स्तुतिमिमां स्तिमितः सुसमाधिना नियमतो यमतोऽनुदिनं पठेत् ।
परमया रमया स निषेव्यते परिजनोऽरिजनोऽपि च तं भजेत् ॥२२॥

अर्थ जो मनुष्य शान्तभाव से पूर्णरूप से मन को एकाग्र करके तथा इन्द्रियों पर नियन्त्रण कर नियमपूर्वक प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करता है, भगवती महालक्ष्मी उसके यहाँ सदा वास करती हैं और उसके बन्धु-बान्धव तथा शत्रुजन भी सदा उसकी सेवा में तत्पर रहते हैं।
mahishasur mardini

Mahishasur Mardini stotram

॥ इति ॥

दोस्तों, आशा करते हैं कि आपको mahishasur mardini पोस्ट पसंद आई होगी। कृपया पोस्ट को शेयर करें साथ ही हमारे ब्लॉग से जुड़े रहें। अपना अमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद। आपका दिन शुभ व मंगलमय हो।