Tulsi Vivah : पौराणिक कथा व अन्य जानकारी

Tulsi Vivah : पौराणिक कथा व अन्य जानकारी।

 

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट tulsi vivah में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, तुलसी के पौधे का हम सभी के विशेषकर सनातन धर्म से जुड़े लोगों के जीवन में अत्यधिक महत्व है। तुलसी के पौधे में दैवीय गुण तो हैं ही साथ ही इसमें औषधिय गुण भी विद्यमान हैं।

क्या आप जानते हैं कि माता तुलसी का विवाह भी हमारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है ? कुछ महीने विश्राम करने के बाद  शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जागते हैं इसके बाद से ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है तथा तुलसा जी का विवाह शालिग्राम के साथ पूरे विधि विधान से संपन्न कराया जाता है। आज की पोस्ट में हम इसी अद्भुत विवाह के बारे में जानेंगे तो आईये,  पोस्ट शुरू करते हैं।

Tulsi Vivah : तुलसी विवाह कथा

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Tulsi Vivah

पौराणिक कथा कहती है कि समुद्र मंथन से निकले अमृत को देवताओं को सौंपने के लिए भगवान श्री विष्णु ने जब मोहिनी रूप को धारण किया तब सभी देव तथा असुरों के साथ-साथ भगवान शिव भी उन पर मोहित हो गये तथा उनका तेज स्खलित हो गया। महादेव का तेज होने के कारण उसे कोई संभाल न सका इसलिए उस तेज को समुद्र को सौंप दिया जिससे कालांतर में जालंधर नामक असुर का जन्म हुआ। यह बालक आगे चलकर पराक्रमी दैत्य राजा बना। इसकी राजधानी का नाम जालंधर नगरी था।

दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जालंधर से हुआ। वृंदा परम विष्णु भक्त थी जबकि जालंधर एक महाराक्षस था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। वहाँ से पराजित होकर वह देवी पार्वती के सौन्दर्य पर मोहित हो गया व उनको पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर गया। tulsi vivah katha

भगवान देवाधिदेव शिव उस समय कैलाश पर नहीं थे इसलिये उन्हीं का ही रूप धर कर वह माता पार्वती के समीप गया, परंतु माँ ने अपने योगबल से उसे तुरंत पहचान लिया तथा वहाँ से अंतर्ध्यान हो गईं। देवी पार्वती ने क्रुद्ध होकर सारा वृतांत भगवान विष्णु को सुनाया। जालंधर की पत्नी वृंदा अत्यन्त पतिव्रता स्त्री थी। उसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति से जालंधर न तो मारा जाता था और न ही पराजित होता था। इसीलिए जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना बहुत आवश्यक था।

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एक समय देवताओं तथा जालंधर की सेना में युद्ध चल रहा था तब किसी भी देवता के वार का जालंधर पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा था। तब शिवजी तथा अन्य देवताओं ने मिलकर योजना बनाई कि श्री विष्णु जालंधर का वेश धारण कर वृंदा के पास पहुंचें तथा उसके सतीत्व को भंग करें क्योंकि वृंदा के सतीत्व का सहारा लेकर वह जगत में अनैतिक कार्यों में लिप्त है tulsi vivah story।  

श्री विष्णु जालंधर का रूप धारण करके उसके महल में प्रवेश कर गए। वृंदा को इस छल का तनिक भी आभास न हुआ। जालंधर बने भगवान के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में हार गया तथा मारा गया।

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इस सारी लीला का जब वृंदा को पता चला, तो उसने क्रुद्ध होकर भगवान विष्णु को ह्रदयहीन शिला होने का श्राप दे दिया। अपने भक्त के श्राप को भगवान विष्णु ने स्वीकार किया और शालिग्राम पत्थर बन गये। सृष्टि के पालनकर्ता के पत्थर बन जाने से ब्रहमाण्ड में असंतुलन की स्थिति हो गई। यह देखकर सभी देवी देवताओ ने वृंदा से प्रार्थना की वह भगवान् विष्णु को इस श्राप से मुक्त कर दे।

वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त तो कर दिया किंतु पति वियोग में दु:खी होकर आत्मदाह कर लिया। जिस स्थान पर वृंदा भस्म हुईं, वहाँ पर तुलसी का ऐक पौधा उत्पन्न हुआ। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा, हे वृंदा ! तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। जो भी मनुष्य मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह tulsi vivah करेगा उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा। तब से प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने में देव-उठावनी एकादशी का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।

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Tulsi Vivah Vidhi : तुलसी विवाह की विधि

 

विवाह के दिन परिवार के सदस्य व्रत रखते हैं। शाम के समय आंगन की धुलाई तथा साफ-सफाई कर एक मंडप बनाया जाता है जिसमें तुलसा जी का पौधा तथा शालिग्राम जी को रखा जाता है। इन दोनों को स्नान कराके नये वस्त्र धारण कराये जाते हैं जिसमें तुलसी माता को चुनरी तथा शालिग्राम जी को धोती पहनाई जाती है। इसके पश्चात पण्डित जी द्वारा विवाह tulasi vivah को पूरे विधि-विधान से संमपन्न कराया जाता है।

Tulsi Vivah

तुलसी पूजा के लाभ

 

• जिस घर में तुलसी होती हैं, वहाँ यम के दूत भी असमय नहीं जा सकते।

• मृत्यु के समय जिसके प्राण तुलसी पत्ते तथा गंगा जल मुख में रखकर निकल जाते हैं, वह समस्त पापों से मुक्त होकर बैकुंठ धाम को प्राप्त होता है।

• ऐसा मनुष्य जो तुलसी व आंवलों की छाया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पितर मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं।

• शाम के समय तुलसी के समीप दिया जलाने से समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।

Tulsi Vivah

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