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Brahma Chalisa : श्री ब्रह्मा जी चालीसा, आरती सहित

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Brahma Chalisa: श्री ब्रह्मा जी चालीसा, आरती सहित

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Brahma chalisa में आपका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, सनातन धर्म के अनुसार इस सृष्टि की संरचना का दायित्व त्रिदेवों पर है जिनमें श्री ब्रह्मा जी इस सृष्टि के रचयिता, श्री विष्णु जी पालनकर्ता तथा शिवजी संहारकर्ता हैं। सृष्टि की उत्पत्ति नाद से हुई है।

Brahma chalisa

इससे पूर्व सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड में शून्य तथा अंधकार था तब ब्रह्माजी ने ही इस सृष्टि का विस्तार किया एवं मनु तथा शतरूपा को इस जगत के विस्तार का कार्य सौंपा।आज की पोस्ट में हम सृष्टि रचयिता श्री ब्रह्मा जी की चालीसा को जानेंगे जिसका पाठ करने से हमें ब्रह्मा जी सहित त्रिदेवों का आशीर्वाद प्राप्त होता है तथा जातक की समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।

तो आईये, पोस्ट शुरू करते हैं— 

Brahma chalisa : ब्रह्मा चालीसा प्रारंभ

॥दोहा॥

जय ब्रह्मा जय स्वयम्भू, चतुरानन सुखमूल।
करहु कृपा निज दास पै, रहहु सदा अनुकूल॥
तुम सृजक ब्रह्माण्ड के, अज विधि घाता नाम।
विश्वविधाता कीजिये, जन पै कृपा ललाम॥

॥चौपाई॥

जय जय कमलासान जगमूला, रहहु सदा जनपै अनुकूला।

रूप चतुर्भुज परम सुहावन, तुम्हें अहैं चतुर्दिक आनन।

रक्तवर्ण तव सुभग शरीरा, मस्तक जटाजूट गंभीरा।

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ताके ऊपर मुकुट बिराजै, दाढ़ी श्वेत ‘महाछवि छाजै।


श्वेतवस्त्र धारे तुम सुन्दर, है यज्ञोपवीत अति मनहर।


कानन कुण्डल सुभग बिराजहिं, गल मोतिन की माला राजहिं।

चारिहु वेद तुम्हीं प्रगटाये, दिव्य ज्ञान त्रिभुवनहिं सिखाये।

ब्रह्मलोक शुभ धाम तुम्हारा, अखिल भुवन महँ यश बिस्तारा।


अर्धांगिनि तव है सावित्री, अपर नाम हिये गायत्री।


सरस्वती तब सुता मनोहर, वीणा वादिनि सब विधि मुन्दर।


कमलासन पर रहे बिराजे, तुम हरिभक्ति साज सब साजे।

क्षीर सिन्धु सोवत सुरभूपा, नाभि कमल भो प्रगट अनूपा।

तेहि पर तुम आसीन कृपाला, सदा करहु सन्तन प्रतिपाला।


एक बार की कथा प्रचारी, तुम कहँ मोह भयेउ मन भारी।


कमलासन लखि कीन्ह बिचारा, और न कोउ अहै संसारा।

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तब तुम कमलनाल गहि लीन्हा, अन्त बिलोकन कर प्रण कीन्हा।


कोटिक वर्ष गये यहि भांती, भ्रमत भ्रमत बीते दिन राती।

पै तुम ताकर अन्त न पाये, लै निराश अतिशय दुःखियाये।

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पुनि बिचार मन महँ यह कीन्हा, महापद्म यह अति प्राचीना।


याको जन्म भयो को कारन, तबहीं मोहि करयो यह धारन।


अखिल भुवन महँ कहँ कोइ नाहीं, सब कछु अहै निहित मो माहीं।


यह निश्चय करि गरब बढ़ायो, निज कहँ ब्रह्म मानि सुखपाये।


गगन गिरा तब भई गंभीरा, ब्रह्मा वचन सुनहु धरि धीरा।

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सकल सृष्टि कर स्वामी जोई, ब्रह्म अनादि अलख है सोई।


निज इच्छा उन सब निरमाये, ब्रह्मा विष्णु महेश बनाये।


सृष्टि लागि प्रगटे त्रयदेवा, सब जग इनकी करिहै सेवा।

महापद्म जो तुम्हरो आसन, ता पै अहै विष्णु को शासन।

विष्णु नाभितें प्रगट्यो आई, तुम कहँ सत्य दीन्ह समुझाई।


भैटहु जाइ विष्णु हितमानी, यह कहि बन्द भई नभवानी।


ताहि श्रवण कहि अचरज माना, पुनि चतुरानन कीन्ह पयाना।

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कमल नाल धरि नीचे आवा, तहां विष्णु के दर्शन पावा।


शयन करत देखे सुरभूपा, श्यामवर्ण तनु परम अनूपा।


सोहत चतुर्भुजा अतिसुन्दर, क्रीटमुकट राजत मस्तक पर।


गल बैजन्ती माल बिराजै, कोटि सूर्य की शोभा लाजै।


शंख चक्र अरु गदा मनोहर, पद्म सहित आयुध सब सुन्दर।


पायँ पलोटति रमा निरन्तर, शेष नाग शय्या अति मनहर।


दिव्यरूप लखि कीन्ह प्रणामू, हर्षित भये श्रीपति सुख धामू।


बहु विधि विनय कीन्ह चतुरानन, तब लक्ष्मी पति कहेउ मुदित मन।


ब्रह्मा दूरि करहु अभिमाना, ब्रह्मरूप हम दोउ समाना।


तीजे श्री शिवशङ्कर आहीं, ब्रह्मरूप सब त्रिभुवन माही।


तुम सों होइ सृष्टि विस्तारा, हम पालन करिहैं संसारा।


शिव संहार करहिं सब केरा, हम तीनहं कहँ काज धनेरा।

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अगुणरूप श्री ब्रह्म बखानहु, निराकार तिनकहँ तुम जानहु।

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हम साकार रूप त्रयदेवा, करिहैं सदा ब्रह्म की सेवा।


यह सुनि ब्रह्मा परम सिहाये, परब्रह्म के यश अति गाये।


सो सब विदित वेद के नामा, मुक्ति रूप सो परम ललामा।


यहि विधि प्रभु भो जनम तुम्हारा, पुनि तुम प्रगट कीन्ह संसारा।


नाम पितामह सुन्दर पायेउ, जड़ चेतन सब कहँ निरमायेउ।


लीन्ह अनेक बार अवतारा, सुन्दर सुयश जगत विस्तारा।


देवदनुज सब तुम कहँ ध्यावहिं, मनवांछित तुम सन सब पावहिं।


जो कोउ ध्यान धरै नर नारी, ताकी आस पुजावहु सारी।


पुष्कर तीर्थ परम सुखदाई, तहँ तुम बसहु सदा सुरराई।


कुण्ड नहाइ करहि जो पूजन, ता कर दूर होइ सब दूषण।

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Brahma ji : आरती श्री ब्रह्मा जी की

पितु मातु सहायक स्वामी सखा, तुम ही एक नाथ हमारे हो।

जिनके कुछ और आधार नहीं, तिनके तुम ही रखवारे हो।


सब भाँति सदा सुखदायक हो, दुःख निर्गुण नाशन हारे हो।


प्रतिपाल करो सिगरे जग को, अतिशय करुणा उर धारे हो।


भुलि हैं हम तो तुमको, तुम तो हमरी सुधि नाहिं बिसारे हो।

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उपकारन को कछु अन्त नहीं, छिन ही छिन जो विस्तारे हो।


महाराज महा महिमा तुम्हरी, मुझसे बिरले बुधवारे हो।


शुभ शान्ति निकेतन प्रेमनिधि, मन मन्दिर के उजियारे हो।


इस जीवन के तुम जीवन हो, इन प्राणन के तुम प्यारे हो।


तुम सों प्रभु पाय ‘प्रताप’ हरि, केहि के अब और सहारे हो।

॥ इति ॥

दोस्तों, आशा करते हैं कि पोस्ट Brahma chalisa आपको पसंद आई होगी। इसी प्रकार की अन्य धार्मिक पोस्ट प्राप्त करने के लिए हमारे साथ जुडे़ रहिये। अपना अमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद। आपका दिन शुभ व मंगलमय हो।


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