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Ganga Chalisa : श्री गंगा चालीसा (हिन्दी अर्थ सहित)

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Ganga Chalisa : गंगा चालीसा  (हिन्दी अर्थ सहित)

नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट ganga chalisa में आपका हार्दिक स्वागत है। “गंगा।” ये शब्द कानों में पड़ते ही मन में शीतल, सुगंधित तथा अविरल बहते जल के मनमोहक चित्र का स्मरण हमारे मन-मस्तिष्क में उभर आता है। दोस्तों, मां गंगा ने हमारे उद्धार के लिए बहुत बड़ा त्याग किया है।

उन्होंने स्वर्ग को त्यागा, देवाधिदेव महादेव की जटाओं को अपना निवास बनाया तथा उसके बाद हम सभी के कल्याण के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुईं। इतना बड़ा त्याग केवल एक मां ही अपनी संतान के लिए कर सकती है। इसलिए हम सभी का कर्तव्य तथा दायित्व है कि हम अपनी उद्धारक मां गंगा का ध्यान रखें तथा उसे स्वच्छ, धवल तथा निर्मल रखने में अपना अधिक-से-अधिक योगदान दें।

आज की पोस्ट में हम गंगा चालिसा का हिन्दी सहित अर्थ जानेंगे जिससे गंगा मैय्या का स्नेह तथा आशीर्वाद हम पर सदैव बना रहे। तो आईये, पोस्ट आरंभ करते हैं –

Ganga Chalisa  : श्री गंगा चालीसा

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।।स्तुति।।

मात शैल्सुतास पत्नी ससुधाश्रंगार धरावली ।
स्वर्गारोहण जैजयंती भक्तीं भागीरथी प्रार्थये।।

।।दोहा।।

जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग।
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग।।
अर्थ: समस्त जगत में पवित्र मानी जाने वाली, देवताओं के लिए भी पूजनीय हे माँ गंगा ! आपकी जय हो, जय हो। आपकी बहती और उछलती हुई तेज धाराएं अद्वीतीय नजारा बनाती हैं, भगवान शिव की जटाओं में निवास करने वाली हे गंगा मैया आपकी जय हो।

।।चौपाई।।

जय जय जननी हराना अघखानी। आनंद करनी गंगा महारानी।।
अर्थ: अपने भक्तों को पापों से मुक्ति दिलाकर, सुख प्रदान करने वाली, नदियों में महारानी हे गंगा मैया आपकी जय हो, महारानी माता आपकी जय हो।

जय भगीरथी सुरसरि माता। कलिमल मूल डालिनी विख्याता।।
अर्थ: हे भागीरथी देवलोक में प्रवाहित होने वाली जगत का पालन करने वाली आपकी जय हो, आप ही इस कलयुग में समस्त पापों को धोने के लिए विख्यात (प्रसिद्ध) हैं।

जय जय जहानु सुता अघ हनानी। भीष्म की माता जगा जननी।।
अर्थ: हे जहानु पुत्री पापों का हरण करने वाली, भीष्म पितामह को जन्म देने वाली जग जननी माता आपकी जय हो, जय हो।

धवल कमल दल मम तनु सजे। लखी शत शरद चंद्र छवि लजाई।।
अर्थ: हे गंगा मैया आप श्वेत कमल की पंखुड़ियों के समान सुंदर हैं, आपकी सुंदरता को देखकर तो शरद ऋतु के सैंकड़ों चंद्रमा भी शरमां जांए।

वहां मकर विमल शुची सोहें। अमिया कलश कर लखी मन मोहें।।
अर्थ: आपका वाहन पवित्र मगरमच्छ भी आपकी शोभा को बढा रहा है, तो वहीं आपके हाथों में अमृत-कलश भी आकर्षित करता है।

जदिता रत्ना कंचन आभूषण। हिय मणि हर, हरानितम दूषण।।
अर्थ: आपके सोने के आभूषणों में कीमती रत्न जुड़े हुए हैं व आपके वक्षस्थल पर मणियों का हार भी दाग व दोष रहित है।

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जग पावनी त्रय ताप नासवनी। तरल तरंग तुंग मन भावनी।।
अर्थ: हे समस्त जगत में पवित्र व प्राणि मात्र के तीनों तापों (आधिभौतिक- सांसारिक वस्तुओं/जीवों से प्राप्त कष्ट, आधिदैविक- दैविक शक्तियों द्वारा दिया गया कष्ट या पूर्व जन्म में किए गये कर्मों से प्राप्त कष्ट एवं आध्यात्मिक- अज्ञानजनित कष्ट) का नास करने वाली। आपकी उछलती हुई तेज प्रवाह से बहती लहरें भी मनभावनी हैं।

जो गणपति अति पूज्य प्रधान। इहूं ते प्रथम गंगा अस्नाना।।
अर्थ: जिस प्रकाश देवताओं में सबसे पहले भगवान श्री गणेश की पूजा होती है, उसी प्रकार हे गंगा मैया सारे तीर्थ स्थलों में सबसे पहले आपके स्नान की मान्यता है।

ब्रह्मा कमंडल वासिनी देवी। श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि।।
अर्थ: हे देवी आप भगवान श्री ब्रह्मा के कमंडल में वास करने वाली हैं। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु के पैर धोकर जो पानी एकत्र किया आप उसी का रुप हो।

साथी सहस्त्र सागर सुत तरयो। गंगा सागर तीरथ धरयो।।
अर्थ: आपने ही राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष प्रदान किया और गंगा सागर तीर्थ को अस्तित्व में लायीं।

अगम तरंग उठ्यो मन भवन। लखी तीरथ हरिद्वार सुहावन।।
अर्थ: आपकी आगे की और उठती हुई तरंगे मन को मोह लेती हैं। आपको देखकर ही हरिद्वार तीर्थ सुहावना लगता है।

तीरथ राज प्रयाग अक्षैवेता। धरयो मातु पुनि काशी करवत।।
अर्थ: आपने ही प्रयाग को अक्षयवट (प्रयाग स्थित प्राचीन बरगद का पेड़ जिसके बारे में मान्यता है कि यह कभी नष्ट नहीं होगा) के समान अमर व तीर्थों का राजा होने के गौरव प्रदान किया, फिर आपने काशी की और रुख किया। कहने का अभिप्राय है गंगा जी के किनारे पर अनेक तीर्थ स्थलों का विकास हुआ।

धनी धनी सुरसरि स्वर्ग की सीधी। तरनी अमिता पितु पड़ पिरही।।
अर्थ: देवता भी आपको स्वर्ग की सीढ़ी मानते हैं, हे गंगा मैया आप धन्य हैं। आप पीढ़ियों से असंतुष्ट पितरों की आत्मा को शांत कर उन्हें मुक्ति दिलाती हैं।

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भागीरथी ताप कियो उपारा। दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा।।
अर्थ: भागीरथ ने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की तब जाकर उन्होंनें आपकी धारा को उनके साथ भेजा।

जब जग जननी चल्यो हहराई। शम्भु जाता महं रह्यो समाई।।
अर्थ: हे जग जननी जब आप अपने वेग से चली तो आपके वेग को सहना पृथ्वी के बस का नहीं था, इसलिए भगवान शिव ने अपनी जटाओं में आपको समा लिया।

वर्षा पर्यंत गंगा महारानी। रहीं शम्भू के जाता भुलानी।।
अर्थ: उस समय अहंकार भी आ गया था क्योंकि आप स्वर्ग को छोड़ना नहीं चाहती थी, इसलिए हे नदियों की महारानी गंगा आपको एक साल तक भगवान शिव की जटाओं में उलझे रहना पड़ा।

पुनि भागीरथी शम्भुहीं ध्यायो। तब इक बूंद जटा से पायो।।
अर्थ: भागीरथी ने फिर से भगवान शिव की स्तुति की जिसके बाद भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर आपके वेग को कम करते हुए आपको अपनी जटाओं से मुक्त किया।

ताते मातु भें त्रय धारा। मृत्यु लोक, नाभा, अरु पातारा।।
अर्थ: भगवान शिव की जटाओं से मुक्त होने के बाद गंगा माता वहां से तीन धारा में बह चली जो मृत्यु लोक, आकाश व पाताल लोक की ओर प्रवाहित हुई।

गईं पाताल प्रभावती नामा। मन्दाकिनी गई गगन ललामा।।
अर्थ: पाताल लोक में आपका नाम प्रभावती तो आकाश में मंदाकिनी है।

मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी। कलिमल हरनी अगम जग पावनि।।
अर्थ: मृत्यु लोक यानि पृथ्वी पर जाह्नवी के रुप में जानी गई, यहां आप कलयुग में विश्व को पापों से मुक्त कर पवित्र करती हो।

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धनि मइया तब महिमा भारी। धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी।।
अर्थ: हे मैया आपकी महिमा अपरमपार हैं, आप धन्य हैं जो इस कलियुग में धर्म की धुरी बनकर पापों का विनाश करती हो।

मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी। धनि सुर सरित सकल भयनासिनी।।
अर्थ: हे पाताल में प्रवाहित होने वाली प्रभावती व आकाश में बहने वाली मंदाकिनी माता आप धन्य हैं। सारे डरों को नष्ट करने वाली देव नदी गंगा आप धन्य हैं।

पन करत निर्मल गंगा जल। पावत मन इच्छित अनंत फल।।
अर्थ: आपके पवित्र जल का पान करते ही प्राणी मात्र की हर इच्छा पूरी होती है।

पुरव जन्म पुण्य जब जागत। तबहीं ध्यान गंगा महं लागत।।
अर्थ: यदि मनुष्य ने पूर्वजन्म में कोई पुण्य किया हो तो ही उसका ध्यान आपकी भक्ति में लगता है।

जई पगु सुरसरी हेतु उठावही। तई जगि अश्वमेघ फल पावहि।।
अर्थ: हे माता आपकी और रखा गया एक एक कदम अश्वमेघ यज्ञ के समान फलदायक होता है।

महा पतित जिन कहू न तारे। तिन तारे इक नाम तिहारे।।
अर्थ: जिन महापापियों को कहीं से भी मुक्ति नहीं मिली ऐसे महापापी भी आपके नाम के सहारे अमरता को पा गए।

शत योजन हूं से जो ध्यावहिं। निशचाई विष्णु लोक पद पावहीं।।
अर्थ:सैंकड़ों योजन दूरी से भी जो आपका ध्यान लगाता है उसकी भगवान विष्णु के लोक में जगह निश्चित है अर्थात उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है, उसे मोक्ष मिलता है।

नाम भजत अगणित अघ नाशै। विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशे।।
अर्थ: हे गंगा मैया आपमें इतनी शक्ति है कि आपके नाम का भजन करने से, अनगिनत पापों का नाश हो जाता है। अज्ञानता का अंधेरा दूर होकर पवित्र ज्ञान व बल बुद्धि से मन प्रकाशित हो जाता है। ganga chalisa

जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना। धर्मं मूल गंगाजल पाना।।
अर्थ: जिसके लिए धर्म और दान ही धन संपत्ति हैं अर्थात जो धर्म व दान में आस्था रखते हैं, उनके लिए गंगाजल का पान भी धर्म के समान है।

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तब गुन गुणन करत दुख भाजत। गृह गृह सम्पति सुमति विराजत।।
अर्थ: आपके पवित्र जल को ग्रहण करके जब आपका गुणगान किया जाता है तो सारे दुख दूर भागने लगते हैं, और घर-घर में संपत्ति व अच्छी बुद्धि विराजमान होती हैं।

गंगहि नेम सहित नित ध्यावत। दुर्जनहूं सज्जन पद पावत।।
अर्थ: गंगा को नियम सहित जो ध्याता है अर्थात ध्यान लगाता है तो बूरे से बूरे आदमी को भी अच्छा पद मिलता है।

उद्दिहिन विद्या बल पावै। रोगी रोग मुक्त हवे जावै।।
अर्थ: बुद्धिहीन विद्या बल को पा लेते हैं, रोगी रोग से मुक्त हो जाते हैं।

गंगा गंगा जो नर कहहीं। भूखा नंगा कभुहुह न रहहि।।
अर्थ: गंगा के नाम को जो लोग जपते रहते हैं वे कभी भी भूखे या वस्त्रहीन नहीं रहते।

निकसत ही मुख गंगा माई। श्रवण दाबी यम चलहिं पराई।।
अर्थ: यदि अंतिम समय में भी यदि किसी के मुख से गंगा माई निकलता है तो यमराज भी अपने कान दबोच कर वहां से परे चला जाते है।

महं अघिन अधमन कहं तारे। भए नरका के बंद किवारें।।
अर्थ: जिन अधम पापियों के लिए नरक तक के दरवाजे बंद थे ऐसे-ऐसे पापी भी आपके सहारे भवसागर से पार हो गए अर्थात मोक्ष पा गए।

जो नर जपी गंग शत नामा।। सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा।।
अर्थ: जिसने भी गंगा के सौ नामों को जपा, उसके सारे काम सारी सिद्धियां पूरी हुई हैं।

सब सुख भोग परम पद पावहीं। आवागमन रहित ह्वै जावहीं।।
अर्थ: उन्होंनें सारे सुख भोग कर परम पद को पाया व जीवन मृत्यु के चक्कर से उसका पिछा छूट जाता है वह आवागमन रहित हो जाता है।

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धनि मइया सुरसरि सुख दैनि। धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी।।
अर्थ: सुख दात्री गंगा मैया आप अन्य हैं हे तीरथ राज त्रिवेणी आप धन्य हैं।

ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा। सुन्दरदास गंगा कर दासा।।
अर्थ: दुर्वासा ऋषि के ककरा ग्राम का निवासी सुंदर दास भी गंगा मैया आपका दास है।

जो यह पढ़े गंगा चालीसा। मिली भक्ति अविरल वागीसा।।
अर्थ: जो भी इस गंगा चालीसा का पाठ करता है उसे आपकी भक्ति प्राप्त होती है व निरंतर आपका आशीर्वचन मिलता रहता है।

।।दोहा।।

नित नए सुख सम्पति लहैं। धरें गंगा का ध्यान।।
अंत समाई सुर पुर बसल। सदर बैठी विमान।।
अर्थ: जो गंगा मैया का ध्यान धरते हैं उन्हें हर रोज नई खुशियां व संपत्ती प्राप्त होती है। वह अंतिम समय में आदरपूर्वक विमान में बैठकर देवलोक में निवास करता है।

संवत भुत नभ्दिशी। राम जन्म दिन चैत्र।।
पूरण चालीसा किया। हरी भक्तन हित नेत्र।।
अर्थ: यह चालीसा को भक्तों के कल्याण के लिए संवत भुज नभ दिशि में चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को संपन्न हुआ इस दिन भगवान श्री राम का जन्मदिन मनाया जाता है इसलिए इसे राम नवमी भी कहा जाता है। अत: संवत का वर्ष जो भी रहा हो लेकिन माह चैत्र और तिथि शुक्ल पक्ष की नवमी को इस चालीसा के लिखने का कार्य पूरा हुआ यह निश्चित है।

*-*-*-॥ इति ॥*-*-*

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