Tripund Tilak : त्रिपुण्ड्र की तीन रेखाओं का क्या है रहस्य ? धारण करने का फल (लाभ)
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भगवान शिव के पूजन में शिवलिंग पर लगाए जाने वाले त्रिपुण्ड Tripund Tilak का क्या है अर्थ ? Tripund Tilak meaning?
नमस्कार दोस्तों ! हमारे ब्लॉग पोस्ट Tripund Tilak में आपका हार्दिक अभिनंदन है। दोस्तों, प्रायः जब भी हम शिवालय में जाते हैं तो शिवलिंग पर तीन रेखायें उकरी हुई पाते हैं। भगवान शिव के भक्त भी अपने ललाट अर्थात मस्तक पर इन रेखाओं को धारण करते हैं।
शैव परम्परा के तिलक त्रिपुण्ड्र से सम्बधित महत्वपूर्ण जानकारी तथा इन तीन रेखाओं के रहस्य, इसके सम्बन्ध में इस लेख में हम चर्चा करेंगे।
प्राय: साधु-सन्तों और विभिन्न पंथों के अनुयायियों के माथे पर अलग-अलग तरह के तिलक दिखाई देते हैं । तिलक विभिन्न सम्प्रदाय, अखाड़ों और पंथों की पहचान होते हैं । हिन्दू धर्म में संतों के जितने मत, पंथ और सम्प्रदाय हैं उन सबके तिलक भी अलग-अलग हैं । अपने-अपने इष्ट के अनुसार लोग तरह-तरह के तिलक लगाते हैं।
शैव परम्परा का प्रतीक है त्रिपुण्ड्र : Tripund Tilak
भगवान शिव के मस्तक तथा शिवलिंग पर सफेद चंदन या भस्म से लगाई गई तीन आड़ी रेखाएं त्रिपुण्ड्र कहलाती हैं । ये भगवान शिव के श्रृंगार का एक हिस्सा हैं । शैव परम्परा में शैव संन्यासी ललाट पर चंदन या भस्म से तीन आड़ी रेखा त्रिपुण्ड्र बनाते हैं।
Tripund Tilak Kaise Lagaye?
त्रिपुण्ड्र कैसे लगायें? आइये, इसे समझ्ते हैं।
सनत्कुमारों का भगवान श्री कालाग्निरुद्र से त्रिपुण्ड्र का रहस्य पूछना
tripund tilak
एक बार सनत्कुमारों ने भगवान कालाग्निरुद्र से पूछा — हे प्रभु ! त्रिपुण्ड्र कितना बड़ा होना चाहिए ? कैसे लगाना चाहिए ? त्रिपुण्ड्र की तीनों रेखाओं का क्या रहस्य है ? कृपया इन प्रश्नों का उत्तर देकर हमारी शंका का निवारण कीजिये।
भगवान कालाग्निरुद्र बोले— मैं आप सभी को त्रिपुण्ड का रहस्य बताता हूं, ध्यानपूर्वक सुनो। तर्जनी अर्थात प्रथम अंगुली के सिवाय अन्य तीन अंगुलियों से भस्म लेकर भक्तिपूर्वक ललाट में त्रिपुण्ड्र लगाना चाहिए। ललाट से लेकर नेत्रपर्यन्त और मस्तक से लेकर भौंहों (भ्रकुटी) तक त्रिपुण्ड्र लगाया जाता है। त्रिपुण्ड्र बायें नेत्र से दायें नेत्र तक ही लम्बा होना चाहिए ।
ऐसा माना जाता है कि त्रिपुण्ड्र की रेखाएं बहुत लम्बी होने पर तप को और छोटी होने पर आयु को कम करती हैं। भस्म मध्याह्न से पहले जल मिला कर, मध्याह्न में चंदन मिलाकर तथा सायंकाल में सूखी भस्म ही त्रिपुण्ड्र रूप में लगानी चाहिए ।
Tripund Tilak : त्रिपुण्ड्र की तीन आड़ी रेखाओं का रहस्य
त्रिपुण्ड्र की तीनों रेखाओं में से प्रत्येक रेखा के नौ-नौ देवता हैं, जो सभी अंगों में स्थित हैं।
प्रथम रेखा — गार्हपत्य अग्नि, प्रणव का प्रथम अक्षर अकार, रजोगुण, पृथ्वी, धर्म, क्रियाशक्ति, ऋग्वेद, प्रात:कालीन हवन और महादेव ये त्रिपुण्ड्र की प्रथम रेखा के नौ देवता हैं ।
द्वितीय रेखा — दक्षिणाग्नि, प्रणव का दूसरा अक्षर उकार, सत्वगुण, आकाश, अन्तरात्मा, इच्छाशक्ति, यजुर्वेद, मध्याह्न के हवन और महेश्वर ये दूसरी रेखा के नौ देवता हैं।
तृतीय रेखा — आहवनीय अग्नि, प्रणव का तीसरा अक्षर मकार, तमोगुण, स्वर्गलोक, परमात्मा, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तीसरे हवन और शिव ये तीसरी रेखा के नौ देवता हैं ।
शरीर के बत्तीस, सोलह, आठ या पांच स्थानों पर लगाया जाता है त्रिपुण्ड्र
त्रिपुण्ड्र लगाने के बत्तीस स्थान — मस्तक, ललाट, दोनों कान, दोनों नेत्र, नाक के दोनों छिद्र , मुख, कण्ठ, दोनों हाथ, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, हृदय, दोनों पार्श्व भाग, नाभि, दोनों अण्डकोष, दोनों उरु, दोनों गुल्फ, दोनों घुटने, दोनों पिंडली और दोनों पैर।
त्रिपुण्ड्र लगाने के सोलह स्थान — मस्तक, ललाट, कण्ठ, दोनों कंधों, दोनों भुजाओं, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, हृदय, नाभि, दोनों पसलियों, तथा पृष्ठभाग में ।
त्रिपुण्ड्र लगाने के आठ स्थान — गुह्य स्थान, ललाट, दोनों कान, दोनों कंधे, हृदय, और नाभि ।
त्रिपुण्ड्र लगाने के पांच स्थान — मस्तक, दोनों भुजायें, हृदय और नाभि ।
इन सम्पूर्ण अंगों में स्थान देवता बताये गये हैं उनका नाम लेकर ही त्रिपुण्ड्र धारण करना चाहिए।
Tripund Tilak : त्रिपुण्ड्र धारण करने का फल (लाभ) !!
• जो कोई भी मनुष्य भस्म का त्रिपुण्ड अपने ललाट पर श्रद्धापूर्वक धारण करता है वह छोटे-बड़े सभी पापों से मुक्त होकर परम पवित्र हो जाता है तथा उसे सब तीर्थों में स्नान का फल मिल जाता है।
• त्रिपुण्ड्र भोग और मोक्ष को देने वाला है, वह सभी रुद्र-मन्त्रों को जपने का अधिकारी होता है ।
• त्रिपुण्ड धारण करने वाला जातक सब भोगों को भोगता है तथा मृत्यु के बाद शिव-सायुज्य व मुक्ति प्राप्त करता है तथा उसे पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता है।
Tripund Tilak : त्रिपुण्ड लगाने के अन्य प्रकार
• कुछ शिवभक्त शिवजी का त्रिपुण्ड लगाकर उसके बीच में माता गौरी के लिए रोली का बिन्दु लगाते हैं । इसे वे गौरीशंकर का स्वरूप मानते हैं।
• गौरीशंकर के उपासकों में भी कोई पहले बिन्दु लगाकर फिर त्रिपुण्ड लगाते हैं तो कुछ पहले त्रिपुण्ड लगाकर फिर बिन्दु लगाते हैं।
• जो केवल मां भगवती के उपासक हैं वे केवल लाल बिन्दु का ही तिलक लगाते हैं।
• शैव परम्परा में अघोरी, कापालिक, तान्त्रिक जैसे पंथ बदल जाने पर तिलक लगाने का प्रकार भी बदल जाता है।
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