fbpx

Durga Saptashati Paath Adhyay 13 : दुर्गा सप्तशती तेरहवां अध्याय

Spread the love

Durga Saptashati Paath Adhyay 13 : दुर्गा सप्तशती तेरहवां अध्याय

 

Durga Saptashati Paath

 

(राजा सुरथ और वैश्य  को देवी का वरदान)

 

Durga Saptashati Paath महर्षि मेधा ने कहा हे राजन ! इस प्रकार देवी के उत्तम माहात्म्य का वर्णन मैंने तुमको सुनाया। जगत को धारण करने वाली इस देवी का ऐसा ही प्रभाव है, वही देवी ज्ञान के देने वाली हैं और भगवान विष्णु की इस माया के प्रभाव से तुम और यह वैश्य तथा अन्य विवेकीजन मोहित होते हैं और भविष्य में मोहित होंगे।

Durga Saptashati

हे राजन ! तुम इसी परमेश्वरी की शरण में जाओ। यही भगवती आराधना करने पर मनुष्य को भोग, स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करती है। मार्कण्ड जी ने कहा महर्षि मेधा की यह बात सुनकर राजा सुरथ ने उन उग्र व्रत वाले ऋषि को प्रणाम किया और राज्य के छिन जाने के कारण उसके मन में अत्यंत ग्लानि हुई, और वह राजा तथा वैश्य तपस्या के लिए वन को चले गए और नदी के तट पर आसान लगाकर भगवती के दर्शन के लिए तपस्या करने लगे। Durga Saptashati Paath

दोनों ने नदी के तट पर देवी की मूर्ति बनाई और पुष्प, धूप, गन्ध, दीप तथा हवन द्वारा उसका पूजन करने लगे। पहले उन्होंने आहार को कम कर दिया। फिर बिलकुल निराहार रहकर भगवती में मन लगाकर एकाग्रता पूर्वक उसकी आराधना करने लगे।

वह दोनों अपने शरीर के रक्त से देवी को बलि देते हुए तीन वर्ष तक लगातार भगवती की आराधना करते रहे। तीन वर्ष के पश्चात जगत का पालन करने वाली चंडिका ने उनको प्रत्यक्ष दर्शन देकर कहा।

Durga Saptashati

Das Mahavidya: 10 महाविद्या के नाम, उत्पत्ति , पूजा, मंत्र से लाभ | Ten Mahavidya In Hindi

Durga Saptashati Path देवी बोलींहे राजन ! तथा अपने कुल को प्रसन्न करने वाले वैश्य ! तुम जिस वर की इच्छा रखते हो वह मुझसे माँगो, वह वर में तुमको दूँगी, क्योंकि मैं तुम पर अत्यंत प्रसन्न हूँ। मार्कण्ड जी कहते हैं यह सुन राजा ने अगले जन्म में नष्ट न होने वाला अखण्ड राज्य और इस जन्म में बल पूर्वक अपने शत्रुओं को नष्ट करने के पश्चात पुनः अपना राज्य प्राप्त करने के लिए भगवती से वरदान माँगा और वैश्य ने भी जिसका चित्त संसार की ओर से विरक्त हो चुका था, अतः भगवती से अपनी  तथा अहंकार रूप आसक्ति को नष्ट कर देने वाले ज्ञान को देने के लिए कहा।

Durga Saptashati

Durga Saptashati देवी ने कहा हे राजन ! तुम शीघ्र ही अपने शत्रुओं को मारकर पुनः अपना राज्य प्राप्त कर लोगे, तुम्हारा राज्य स्थिर रहने वाला होगा, फिर मृत्यु के पश्चात आप सूर्यदेव के अंश से जन्म लेकर सावर्णिक मनु के नाम से इस पृथ्वी पर ख्याति को प्राप्त होंगे।

Durga Saptashati

हे वैश्य ! कुल में श्रेष्ठ आपने जो मुझसे माँगा है, वह वर मैंआपको देती हूँ, आपको मोक्ष के देने वाले ज्ञान की प्राप्ति होगी। मार्कण्ड जी कहते हैं इस प्रकार उन दोनों को मनवांछित वर प्रदान कर तथा उनसे अपनी स्तुति सुनकर भगवती अतंर्धान हो गईं और इस प्रकार क्षत्रियों में श्रेष्ठ वह राजा सुरथ भगवान सूर्यदेव से जन्म लेकर इस पृथ्वी पर सावर्णिक मनु के नाम से विख्यात होंगे।

॥ इति दुर्गा सप्तशती Durga Saptashati तेरहवां अध्याय॥


Spread the love